
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 01 नवम्बर 2025 को सुबह 09:11 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त- 02 नवम्बर 2025 को सुबह 07:31 बजे तक।
इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश, जातकर्म संस्कार आदि सभी कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। देव शयनी एकादशी के बाद यह व्रत सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन निर्जल या केवल जलीय पदार्थों पर उपवास रखना चाहिए। यदि उपवास नहीं रख रहे हैं तो इस दिन चावल, प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन आदि बिलकुल न खाएं। इस व्रत को रखने के हैं 09 प्रमुख लाभ।
1. पाप हो जाते हैं नष्ट: एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कार नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. चंद्र दोष: कुंडली में चंद्रमा के कमजोर होने की स्थिति में जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखना चाहिए। व्यक्ति यदि सभी एकादशियों में उपवास रखता है तो उसका चंद्र सही होकर मानसिक स्थिति भी सुधर जाती है।
3. अश्वमेघ एवं राजसूय यज्ञ का फल: कहते हैं कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
4. पितृदोष से मुक्ति: पितृदोष से पीड़ित लोगों को इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ मिलता है जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।
5. भाग्य हो जाता जागृत: देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जागृत होता है।
6. धन और समृद्धि: पुराणों अनुसार जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
7. कथा श्रवण या वाचन: इस दिन व्रत रखकर देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा का श्रवण या वाचन करना चाहिए। कथा सुनने या कहने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
8. तुलसी पूजा: इस दिन शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है। इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।
9. विष्णु पूजा: इस दिन भगवान विष्णु या अपने इष्ट-देव की उपासना करना चाहिए। इस दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः "मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है।
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