
व्रत रखने की संपूर्ण विधि और नियम इस प्रकार हैं:
1. व्रत से एक दिन पहले (दशमी तिथि) के नियम:
भोजन: दशमी की रात को केवल सात्विक भोजन करें, जिसमें लहसुन, प्याज या तामसिक खाद्य पदार्थ शामिल न हों।
ब्रह्मचर्य: रात में ब्रह्मचर्य का पालन करें और जमीन पर शयन करें।
स्मरण: रात में सोने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान और स्मरण करें।
2. मोक्षदा एकादशी के दिन (व्रत की विधि):
सुबह के कार्य:-
ब्रह्म मुहूर्त में उठें: सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
स्नान और शुद्धता: दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर, जल में गंगाजल मिलाकर या केवल शुद्ध जल से स्नान करें।
वस्त्र धारण: स्वच्छ और सादे वस्त्र (अधिमानतः पीले रंग के) धारण करें।
संकल्प: भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें कि आप इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम के साथ पूरा करेंगे।
पूजा विधि:-
स्थापना: पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
अभिषेक: सबसे पहले भगवान विष्णु का जल और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से अभिषेक करें।
अर्घ्य और दीपक: उगते सूर्य को अर्घ्य दें (यदि सूर्योदय हो गया है)। घी का दीपक और धूप जलाएँ।
सामग्री अर्पित करें: भगवान को पीले फूल, पीला चंदन, अक्षत (चावल), फल (जैसे केला), और पीली मिठाई (जैसे बेसन के लड्डू) अर्पित करें।
तुलसी दल: भोग में तुलसी दल (पत्ते) अवश्य शामिल करें, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
ध्यान दें: एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें। पत्तों को एक दिन पहले दशमी को ही तोड़कर रख लेना चाहिए। एकादशी पर तुलसी को जल भी नहीं चढ़ाना चाहिए, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन माता तुलसी भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
मंत्र जप और पाठ:-
पूरे दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" मंत्र का अधिक से अधिक जप करते रहें (कम से कम 108 बार)।
मोक्षदा एकादशी के दिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। आपको व्रत कथा के साथ-साथ गीता का कम से कम एक अध्याय अवश्य पढ़ना चाहिए या सुनना चाहिए।
दिनभर के नियम:-
निर्जला या फलाहार: सामर्थ्य अनुसार निर्जला व्रत (बिना जल के) रखें, या फलाहार (फल और दूध/जल) कर सकते हैं। अन्न, चावल और दाल का सेवन पूरी तरह वर्जित है।
ब्रह्मचर्य: पूरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
सात्त्विकता: मन, वाणी और कर्म में सात्त्विकता बनाए रखें। किसी की निंदा न करें।
शाम और रात:-
शाम की पूजा: सायंकाल में पुनः भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
जागरण: रात्रि में भजन-कीर्तन, प्रभु स्मरण और ध्यान करें।
3. पारण के नियम (द्वादशी तिथि को व्रत खोलना):-
पारण का समय: एकादशी व्रत का पारण (व्रत खोलना) हमेशा द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद निर्धारित मुहूर्त में ही करना चाहिए।
द्वादशी पूजा: सुबह उठकर स्नान करें और फिर से भगवान विष्णु की पूजा करें।
दान: पारण से पहले अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं, वस्त्र या अन्न का दान करें।
पारण: दान और पूजा के बाद, तुलसी जल या किसी सात्विक भोजन (चावल को छोड़कर) से अपना व्रत खोलें।
आगामी मोक्षदा एकादशी (उदाहरण के लिए):-
चूंकि मोक्षदा एकादशी की तिथि हर साल बदलती है, यहां एक आगामी तिथि दी गई है:
मोक्षदा एकादशी 2025: 1 दिसंबर 2025 (सोमवार):-
पारण का शुभ समय (2 दिसंबर 2025): सुबह 6:57 बजे से 9:03 बजे के बीच।
पारण हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करें, जो पंचांग के अनुसार बदलता रहता है।
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