
पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि:
संकल्प: सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ (संभव हो तो पीले) वस्त्र धारण करें। हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थान: घर के मंदिर में भगवान विष्णु या लड्डू गोपाल की प्रतिमा स्थापित करें। पूरे स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
अभिषेक और श्रृंगार: भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं। उन्हें पीले फूल, पीले फल, चंदन और धूप-दीप अर्पित करें।
तुलसी अर्पण: भगवान विष्णु को तुलसी दल अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें तुलसी जरूर चढ़ाएं (ध्यान रहे कि एकादशी के दिन तुलसी नहीं तोड़ी जाती, इसलिए एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें)।
मंत्र जप और कथा: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें और पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
आरती: अंत में घी के दीपक से आरती करें और अनजाने में हुई भूलचूक के लिए क्षमा मांगें।
पुत्रदा एकादशी व्रत के मुख्य नियम:
दशमी से संयम: व्रत के नियम दशमी तिथि (एक दिन पहले) की रात से ही शुरू हो जाते हैं। दशमी को सूर्यास्त के बाद भोजन न करें और सात्विक रहें।
चावल का त्याग: एकादशी के दिन चावल खाना पूरी तरह वर्जित है। माना जाता है कि इस दिन चावल खाना जीव हत्या के समान है।
सात्विक आहार: यदि आप फलाहारी व्रत रख रहे हैं, तो केवल फल, दूध और कुट्टू/सिंघाड़े का आटा जैसे सात्विक भोजन ही लें। नमक में केवल सेंधा नमक का प्रयोग करें।
ब्रह्मचर्य और व्यवहार: इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। किसी की निंदा न करें, झूठ न बोलें और क्रोध से बचें।
रात्रि जागरण: एकादशी की रात को सोना नहीं चाहिए। रात भर भजन-कीर्तन या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अति शुभ होता है।
पारण का नियम: व्रत का पारण हमेशा द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। पारण से पहले किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान-दक्षिणा जरूर दें।
संतान प्राप्ति के लिए विशेष मंत्र
यदि यह व्रत संतान की कामना के लिए किया जा रहा है, तो पूजा के समय इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है:
"ॐ देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।"
शुभ मुहूर्त (दिसंबर 2025 - जनवरी 2026):
पारण समय (30 दिसंबर वालों के लिए): 31 दिसंबर को दोपहर 1:26 बजे से 3:31 बजे तक।
पारण समय (31 दिसंबर वालों के लिए): 1 जनवरी 2026 को सुबह 7:14 बजे से 9:18 बजे तक।
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