पूजा पाठ या अन्य शुभ कर्मों में क्यूं करते हैं तांबे के बर्तन का उपयोग

हिंदू धर्म को मानने वाले प्रत्येक नर नारी अपने ईष्ट देव की पूजा किसी न किसी रूप में करते ही हैं, और हर भगवान की पूजा पाठ के लिए तरह-तरह के नियम भी बनाएं गए है । उन्हीं नियमों में से एक नियम यह भी है कि पूजा में तांबे के बर्तन, यानि की थाली, लोटा, प्लेट या आचमनी आदि का प्रयोग लगभग सभी पूजाओं में होता ही हैं । धर्म के विद्वानों की माने तो तांबे से बने बर्तन पूरी तरह से शुद्ध होते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि इनकों बनाने के लिए किसी भी अन्य धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है । शास्त्रों में एक कथा आती है जिसमें तांबे के बर्तनों का पूजा पाठ में उपयोग के बारे बताया गया हैं ।

 

वराह पुराण में उल्लेख आता है कि प्राचीन समय में गुडाकेश नाम का एक राक्षस हुआ करता था, राक्षस होने के बावजूद वह भगवान श्री विष्णु का अनन्य भक्त था, भगवान को प्रसन्न करने के लिए वह घोर तपस्या भी करता था । एक बार राक्षस की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर श्री नारायण ने प्रकट होकर उसे वरदान मांगने को कहा, तब राक्षस गुडाकेश ने वरदान में मांगा कि हे प्रभु मेरी मृत्यु आपके सुदर्शन चक्र से ही हो मृत्यु के बाद मेरा पूरा शरीर तांबे का हो जाये, और वह तांबा अत्यंत पवित्र धातु बन जाये । फिर उसी तांबे के कुछ पात्र बन जाये जिनका उपयोग आपकी पूजा में हमेशा होता रहे, एवं जो भी इन पात्रों का उपयोग आपकी पूजा में करें, उनके उपर आपकी कृपा बनी रहे ।

 

राक्षस गुडाकेश के द्वारा मांगे गये वरदान से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हो सुदर्शन चक्र से राक्षक के शरीर के कई टुकड़े कर दिए, जिसके बाद गुडाकेश के मांस से तांबा, रक्त से सोना, हड्डियों से चांदी आदि पवित्र धातुओं का निर्माण हुआ, यही वजह है कि भगवान की पूजा के लिए हमेशा तांबे के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता है ।

pooja patha

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