यदि आपकी कुंडली में भी है कालसर्प योग तो समझो आप हैं दुनिया के विशिष्ट व्यक्ति

व्यक्ति के जन्म के समय जो दोष या योग बनते हैं, उन्हीं के आधार पर जातक की कुंडली को देखकर भविष्य के बारे में कुछ हर पता कर सकते हैं । इन्हीं दोष में एक है 'कालसर्प दोष' कहा जाता है कि यह योग कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को ही होता है । जैसे की पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चन्द्रग्रहण लगता है । सूर्य और चन्द्रमा दोनों ही अति विशिष्ठ है तो राहु केतू इन दोनों को निगलकर ग्रहण लगाता हैं वैसे ही विशिष्ठ व्यक्तियों को भी कालसर्प दोष लगता है ।

 

क्यों होता है कालसर्प दोष

 

कालसर्प दोष एक योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या श्राप के कारण उसकी जन्मकुंडली में होता है । ऐसे जातक व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होते ही है, मुख्य रूप से उन्हें संतान संबंधी कष्ट भी होता है । कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन में अमृत निकला तो देवताओं को अमृत पिलाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर दानवों को जल और देवताओं को अमृत पान कराया था । उसी समय स्वरभानु दैत्य ने मोहिनी को ऐसा करते देख लिया तो वह भी चुपके से देवताओं का रूप बनाकार देवताओं की मंडली में जा बैठा । लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने स्वरभानू दैत्य को पहचान लिया, और मोहिनी को बताया कि यह देवता नहीं दैत्य है ।

 

मोहिनी तुरंत भगवान विष्णु के रूप में प्रकट होकर सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का गला काट दिया, लेकिन अमृत पान करने के कारण उसकी मृत्यु नहीं और उसका शरीर दो भागों में बंट गया । श्री भगवान ने स्वरभानु से कहा, चूंकि तुम्हारे अंदर अमृत है तो तुम अमर रहोगे लेकिन तुम्हारा सिर राहु और धड़ केतु के नाम से जाना जाएगा । दैत्य स्वरभानु राहु और केतु दो रूप में हो गया, लेकिन उसकी यह स्थिति चंद्रमा और सूर्य के कारण हुई थी । कहते है कि तब से ही राहु केतु सूर्य और चन्द्रमा को निगल लेता है जिससे सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होता है ।राहु केतु दोनों एक दूसरे से सातवें घर में स्थित रहते हैं और दोनों के बीच 180 डिग्री की दूरी बनी रहती है । ये सदैव वक्री रहता है । अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है जिस कारण सूर्य ग्रहण होता है ।

 

उसी प्रकार पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चन्द्रग्रहण लगता है । भगवान विष्णु को सूर्य भी कहा गया है जो दीर्घवृत्त के समान हैं । राहु केतु दो सम्पात बिन्दु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं । इन दो बिन्दुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने से ही 'कालसर्प योग (दोष)' बनता है जो व्यक्ति से संघर्ष कराता है । इसलिए जिस प्रकार सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अति विशिष्ठ हैं उसी प्रका कालसर्फ दोष भी विशिष्ठ व्यक्तियों को ही होता हैं ।

kaal sarp dosh

from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2NFxBMP
Previous
Next Post »