12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मंदिर है। ओंकारेश्वर मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास स्थित है। नर्मदा नदी के मध्य ओमकार पर्वत पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदुओं की चरम आस्था का केंद्र है । यहां ऊं शब्द की अत्पत्ति श्री ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। इसलिए हर धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं शब्द के साथ ही किया जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इसलिए इसे ओंकारेश्वर नाम से पुकारा जाता है। ओंकारेश्वर की महीमा का उल्लेख पुराणों में संकद पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में किया जाता है। हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन विशेष महत्व है । तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओमकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं। अन्यथा वे अधूरे ही माने जाते हैं |
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है। जिसकी प्रथम मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर है। ओंकारेश्वर में अनेक मंदिर हैं नर्मदा के दोनों दक्षिणी व उत्तरी तटों पर मंदिर हैं। पूरा परिक्रमा मार्ग मंदिरों और आश्रमों से भरा हुआ है। कई मंदिरों के साथ यहां अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा जी के दक्षिणी तट पर विराजमान हैं।
ओंकारेश्वर और अमलेश्वर दोनों शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर्वतराज विंध्य ने घार तपस्या की थी और उनकी तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना कर कहा के वे विंध्य क्षेत्र में स्थिर निवास करें उसके बाद भगवान शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। वहां एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में बंटी है। इसी प्रकार से पार्थिवमूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, उसे ही परमेश्वर अथवा अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
ओंकारेश्वर में प्रतिदिन विश्राम करते हैं महादेव
ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारी के अनुसार माना जाता है की 12 ज्योतिर्लिंगों में यह एकमात्र ज्योतिरलिंग है जहां महादेव शयन करने आते हैं। भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों में भ्रमण के पश्चात यहां आकर विश्राम करते हैं। भक्तगण एवं तीर्थयात्री विशेष रूप से शयन दर्शन के लिए यहां आते हैं। भोलेनाथ के साथ यहां माता पार्वती भी रहती हैं और रोज रात में यहां चौसर-पांसे खेलते हैं। यहां शयन आरती भी की जाती है, शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि रात में गर्भगृह में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन जब सुबह देखते हैं तो वहां पांसे उल्टे मिलते हैं, यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य है जिसके बारे में कोई नहीं जानता। ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की गुप्त आरती की जाती है जहां पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भगृह में नहीं जा सकता। पुजारी भगवान शिव का विशेष पूजन एवं अभिषेक करते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर में पूजा और नियम
मंदिर में नियमित रूप से प्रतिदिन 3 पूजा की जाती हैं। तीनों पूजा अलग-अलग पूजारियों द्वारा की जाती है। प्रातःकालीन पूजा ट्रस्ट द्वारा की जाती है, दोपहर की पूजा सिंधिया घराने के पुजारी करते हैं और सायंकालीन पूजा होलकर स्टेट के पुजारी द्वारा की जाती है। मंदिर में साल भर ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन सावन माह में मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। कहा जाता है की जो भक्त नर्मदा में स्नान कर नर्मदा जल से भरे पात्र, पुष्प, नारियल एवं अन्य सामग्री लेकर भगवान का पूजन करते हैं। कई भक्त पुरोहित के साथ भगवान का विशेष पूजन एवं अभिषेक भी करते हैं। पर्व काल एवं मेलों के दौरान भारी भीड़ होती है।
प्रत्येक सोमवार को भगवान ओंकारेश्वर की तीन मुखों वाली स्वर्णखचित मूर्ति एक सुन्दर पालकी में विराजित कर ढोल नगाडों के साथ पुजारियों एवं भक्तों द्वारा जुलुस निकाला जाता है जिसे डोला या पालकी कहते हैं इस दौरान सर्वप्रथम नदी तट पर जाते हैं एवं पूजन अर्चन किया जाता है तत्पश्चात नगर के विभिन्न भागों में भ्रमण किया जाता है। यह जुलुस सोमवार सवारी के नाम से जाना जाता है। पवित्र श्रावण मास में में यह बड़े पैमाने पर मनाया जाता है एवं भारी मात्रा में भक्त नृत्य करते हुए एवं गुलाल उड़ाते हुए ओम् शम्भू भोले नाथ का उद्घोष करते हैं यह बड़ा ही सुन्दर द्रश्य होता है।
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