माता हिडिंबा मंदिर पर्यटन नगरी मनाली की शान है। यहां घूमने आने वाला हर सैलानी माता के दरबार में हाजरी लगाता है। माता के दर्शन के लिए प्रांगण में घंटों लंबी लाइन में खड़े होकर श्रद्धालु माता के आगे अपना शीश झुकाते हैं। मनाली मॉल से एक किलोमीटर दूर देवदार के घने व गगन चुंबी जंगलों के बीच स्थित लगभग 82 फुट ऊंचे पगौड़ा शैली के मंदिर का निर्माण कुल्लू के राजा बहादुर ङ्क्षसह ने सन 1553 में करवाया था। मंदिर के अंदर माता हिडिंबा की चरण पादुका हैं। मंदिर का निर्माण 1533 में कराया गया था। मंदिर में कभी जानवरों की बलि दी जाती थी, लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है। लेकिन आज भी मंदिर की दीवारों पर सैकड़ों जानवरों के सींग लटके हुए हैं।
मंदिर में भीम पुत्र घटोत्कच्च का भी बना है मंदिर
इस मंदिर का निर्माण 1553 ईस्वी में महाराज बहादुर सिंह ने कराया था। पगोड़ा शैली इस मंदिर की खासियत है। लकड़ी से निर्मित इस मंदिर की चार छतें है। नीचे की तीन छतों का निर्माण देवदार की लकड़ी के तख्तों से हुआ है जबकि उपर की चौथी छत तांबे एवं पीतल से बनी है। नीचे की छत सबसे बड़ी, दूसरी उससे छोटी, तीसरी उससे भी छोटी और चौथी सबसे छोटी है। सबसे छोटी छत एक कलश जैसी नजर आती है। करीब 40 मीटर उंचे शंकु के आकार में बने इस मंदिर की दीवारें पत्थर की है। प्रवेश द्वार और दीवार पर सुन्दर नक्काशी हो रही है। अन्दर एक शिला है जिसे, देवी का विग्रह रूप मानकर पूजा जाता है। हर साल जेष्ठ माह में यहां मेला लगता है। यहां पर भीम के पुत्र घटोत्कच का भी मंदिर है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार
हिडिंबा एक राक्षसी थी, जिसके भाई हिडंब का राज मनाली के आसपास के पूरे इलाके में था। हिडिंबा ने महाभारत काल में पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम से शादी की थी। हिडिंबा ने प्रण लिया था कि जो उसके भाई हिडिंब को युद्ध में मात देगा। उससे वो शादी करेगी। अज्ञातवास के दौरान पांडव मनाली के जंगलों में भी आए थे और उसी समय यहां राक्षस हिडिंब से भीम से युद्ध किया था। भीम ने हिडिंब को युद्ध में हराकर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद हिडिंबा ने भीम से शादी कर ली थी। लेकिन भीम से शादी करने के बाद राक्षसी हिडिंबा मानवी बन गई थी। महाभारत के युद्ध में घटोत्कच का नाम आता है। लोककथाओं के मुताबिक, वो हिडिंबा और भीम का ही बेटा था। मां के आदेश पर घटोत्कच ने युद्ध में अपनी जान देकर कर्ण के बाण से अर्जुन की जान बचाई थी। हिडिंबा राक्षसी की तब से ही लोग पूजा करने लगे थे।
कुल्लू के पहले राजा को दिलाई थी राजगद्दी
कहा जाता है कि विहंगम दास नाम का शख्स एक कुम्हार के यहां नौकरी करता था। हिडिम्बा देवी ने विहंगम को सपने में दर्शन देकर उसे कुल्लू का राजा बनने का आशीर्वाद दिया था। इसके बाद विहंगम दास ने यहां के एक अत्याचारी राजा का अंत कर दिया था। वे कुल्लू राजघराने के पहले राजा माने जाते हैं। इनके वंशज आज भी हिडिम्बा देवी की पूजा करते हैं। कुल्लू राजघराने के ही राजा बहादुर सिंह ने हिडिंबा देवी की मूर्ति के पास मंदिर बनवाया था।
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