जानिए श्राद्धपक्ष में क्यों होते हैं ये 16 दिन, जानें इसका महत्व और कारण

हिन्दू धर्म में श्राद्ध कर्म को विशेष महत्व दिया गया है। हर साल पितृपक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिनों तक पितृपक्ष होता है। इस वर्ष 24 सितंबर 2018 से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो रहा है और 8 अक्टूबर को समाप्त होगा। इन 15 दिनों तक पितृपक्ष यानी श्राद्ध पक्ष चलेगा। धर्म के अनुसार इन दिनों कोई भी शुभ कार्य नहीं होते हैं, मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की प्रत्येक की मृत्यु इन 16 दिनों में आने वाली 16 तिथियों को छोड़कर अन्य किसी दिन नहीं होती है। इन दिनों में श्राद्ध कर्म पितरों की संतुष्टि, शांति और मोक्ष प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में मृत्यु लोक के दरवाजे खुल जाते है और सभी पितरों का धरती पर आगमन होता है। इसलिए यदि किसी परिजन की मृत्यु के समय श्राद्ध नहीं हो सका हो तो पितृपक्ष में परिजन की आत्मा की शांति के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा अगर किसी को अपने परिजन की मृत्यु की तारीख ज्ञात न हो सके तो पितृपक्ष की कुछ विशेष तिथियां में श्राद्धकर्म किया जा सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं की श्राद्धपक्ष सिर्फ इन 16 दिनों में ही क्यों होता है। आइए जानते हैं 16 दिन का महत्व और इसके पीछे का कारण...

pitrapaksh

ज्योतिष की दृ्ष्टि से देखा जाए तो पितृपक्ष का समय पितरों के निमित्त श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इस दौरान सूर्य कन्या राशि में रहता है और यह ज्योतिष गणना पितरों के अनुकूल मानी जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार हमारी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक होता है। इस अवधि में 16 तिथियां होती हैं और इन्हीं ति‍थियों में प्रत्येक की मृत्यु होती है। सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है। वहीं भारतीय दर्शन के अनुसार 9 की संख्या को शुभ माना जाता है और इसी के साथ बारहवीं तिथि को संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की मृत्यु तिथि का ज्ञान ना हो तो ऐसी स्थिति में सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है।



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