पितृपक्षः 2018, अपने पितरों, पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का पर्व होता हैं, श्राद्धपक्ष

पितृपक्ष अर्थात अपने पितरों, अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का एक ऐसा महापर्व जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक यानी की पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि मानी गई है जिसमें अपने कुल के पितरों जो इस दुनिया को छोड़कर चले गये और जिनके कारण हमारा अस्तित्व हैं उनको प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए उनके निमित्त श्राद्ध कर्म किये जाते हैं ।

 

इन 15 दिनों को श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष और महालय के नाम से जाना जाता है । शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में वे पूर्वज़ जो अब मौजूद नहीं हैं वे सभी पितृपक्ष में सूक्ष्म रूप में धरती पर आते हैं और अपेक्षा करते है की उनके लिए आत्म तृप्ति के हेतू उनके वंशज तर्पण या पिंडदान आदि कर्म करें जिसे ग्रहण कर वे तृप्त हो सके । इस साल 2018 में पितृपक्ष का आरंभ 24 सितंबर को भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से होगा, और 8 अक्तूबर को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या तक रहेगा ।

 

ये होते हैं हमारे पितर


हमारे कुल परिवार के ऐसे सदस्य जो अब जीवित नहीं है, दिवंगत हो गये, चाहे वे बुजूर्ग, बच्चे, महिला या पुरुष, विवाहित या अविवाहित थे जो अब शशरीर हमारे बीच नहीं हैं, वे सब पितर कहे जाते है । ऐसा कहा जाता है कि अगर हमारे पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त है तो उनके बच्चों के घर में भी सुख शांति बनी रहती है, साथ ही हमारे दिवंगत पितर बिगड़ते कामों को बनाने में हमारी मदद भी करते हैं । इसलिए कहा जाता कि कम से कम पितृपक्ष में पितरों को याद करना चाहिए और उनके निमित्त तर्पण, पिण्डदान से कर्म करना ही चाहिए ।

 

पितृपक्ष तिथि


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं । आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पहला श्राद्ध किया जाता है, लेकिन भाद्रपद पूर्णिमा को भी उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिन्होंने किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि के दिन शरीर छोड़ा हो । अगर किसी कारण भाद्रपद पूर्णिमा को श्राद्ध नहीं कर सके तो फिर आश्विन मास सर्व पितृमोक्ष अमावस्या के दिन भी किया जा सकता हैं । शास्त्रों के अनुसार माह के दोनों पक्ष- कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष में जिस भी तिथि को हमारे पूर्वजों का निधन हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिये ।

 

जिन्हें तिथि याद न हो तो वे इस दिन करें श्राद्ध


आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी एवं अंग्रेजी कैलेंडर के कारण कई लोगों को तिथि ही याद नहीं रहती और ऐसे लोग अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि तक को भूल जाते हैं । ऐसी स्थिति के लिए शास्त्रों में यह विधान दिया गया है कि यदि किसी को अपने पितरों, पूर्वजों के निधन की तिथि मालूम नहीं हो तो वे लोग आश्विन अमावस्या तिथि जिसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है, उस दिन तर्पण, पिंडदान आदि श्राद्ध कर्म करने से भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं ।


पितृपक्ष में पिताजी का श्राद्ध अष्टमी तिथि एवं माताजी का श्राद्ध नवमी तिथि को ही किया जाता हैं । अगर परिवार में यदि किसी परिजन की अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे कि किसी दुर्घटना आदि का शिकार हुए हों या आत्महत्या की हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है ।

pitru paksha

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