गणेश चतुर्थी विशेष: इन आठ अष्टविनायक शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से पूरी होगी अष्टसिद्धि की कामना

सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। गणपति जी को बुद्धिदाता व विघ्यनहर्ता भी कहा जाता है। यूं तो गणपति जी की आराधना पूरे देश में की जाती है लेकिन महाराष्ट्र में कुछ खास तरह से की जाती है। वहीं प्रत्येक वर्ष आने वाली बड़ी गणेश चतुर्थी पर भी देशभर में खासा उत्साह होता है लेकिन महाराष्ट्र में इसे असग ही अंदाज़ में मनाया जाता है क्योंकि महाराष्ट्र की संस्कृति में गणपति जी का विशेष स्थान है। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाने वाला गणपति महोत्सव महाराष्ट्र के सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इस दौरान महाराष्ट्र के लगभग हर छोटे बड़े शहरों गांवों में गणपति उत्सव में भगवान श्री गणेश की भक्ति में लीन रहते हैं। वहीं गणेशोत्सव के दौरान यहां मौजूद अष्टविनायक शक्तिपीठ के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है। यह आठ विनायक शक्तिपीठों में गणपति की 8 स्वयंभू प्रतिमाएं विराजित हैं। आइए जानते हैं इस आठ शक्तिपीठों के बारे में....

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1. श्री मयूरेश्वर , मोरगाओं

श्री मयूरेश्वर मंदिर उर्फ़ श्री मोरेश्वर मंदिर भगवान गणेश को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। भगवान गणेश, गजमुखी बुद्धि के देवता है। यह मंदिर पुणे जिले के मोरगांव में बना हुआ है, जो महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर से 50 किलोमीटर की दुरी पर है। यह मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायको का प्रारंभ और अंत बिंदु दोनों ही है।

2. श्री सिद्धिविनायक, सिद्धटेक

भगवान गणेश के अष्टविनायक मंदिरों में प्रथम मंदिर मोरगांव के बाद सिद्धटेक का नंबर आता है। लेकिन श्रद्धालु अक्सर मोरगांव और थेउर के दर्शन कर बाद सिद्धिविनायक मंदिर के दर्शन करते है। सिद्धटेक में भीमा नदी के तट पर बसा सिद्धिविनायक मंदिर अष्टविनायकों में से एक है। अष्टविनायकों में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, पारंपरिक रूप से जिस मूर्ति की सूंढ़ दाहिनी तरफ होती है, उसे सिद्धि-विनायक कहा जाता है।

3. श्री बल्लालेश्वर,पाली

ल्लालेश्वर रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र के पाली गाँव में स्थित भगवान गणेश के 'अष्टविनायक' शक्ति पीठों में से एक है। ये एकमात्र ऐसे गणपति हैं, जो धोती-कुर्ता जैसे वस्त्र धारण किये हुए हैं, क्योंकि उन्होंने अपने भक्त बल्लाल को ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे। इस अष्टविनायक की महिमा का बखान 'मुद्गल पुराण' में भी किया गया है।

4. श्री वरद विनायक, महाड

वरदविनायक मंदिर हिन्दू दैवत गणेश के अष्टविनायको में से एक है। यह मंदिर भारत में महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के कर्जत और खोपोली के पास खालापुर तालुका के महड गाँव में स्थित है। इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति को स्वयंभू कहा जाता है। कहा जाता है की इस वरदविनायक मंदिर का निर्माण 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने करवाया था। मंदिर का परिसर सुंदर तालाब के एक तरफ बना हुआ है। 1892 से महड वरदविनायक मंदिर का लैंप लगातार जल रहा है।


5. श्री चिंतामणि , थेऊर

अष्टविनायक में पांचवें गणेश हैं चिंतामणि गणपति। चिंतामणी का मंदिर महाराष्ट्र राज्य में पुणे ज़िले के हवेली तालुका में थेऊर नामक गाँव में है। भगवानगणेश का यह मंदिर महाराष्ट्र में उनके आठ पीठों में से एक है। यहाँ गणेश जी ‘चिंतामणी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिसका अर्थ है कि “यह गणेश सारी चिंताओं को हर लेते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं”। मंदिर के पास ही तीन नदियों का संगम है। ये तीन नदियां हैं भीम, मुला और मुथा। यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं तो इस मंदिर में आने पर ये सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

6. श्री गिरिजात्मजा , लेन्याद्री

गिरिजात्मज मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायको में छठा मंदिर है, जो महाराष्ट्र जिले के पुणे के लेण्याद्री में बना हुआ है। लेण्याद्री एक प्रकार की पर्वत श्रंखला है, जिसे गणेश पहाड़ी भी कहा जाता है। लेण्याद्री में 30 बुद्धिस्ट गुफाए बनी हुई है। गिरिजात्मज मंदिर, अष्टविनायको में से एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पर्वतो पर बना हुआ है, जो 30 गुफाओ में से सांतवी गुफा पर बना हुआ है। भगवान गणेश के आठो मंदिरों को लोग पवित्र मानकर पूजते है।

7. श्री विघ्नेश्वर , ओजार

विघ्नेश्वर अष्टविनायक का मंदिर महाराष्ट्र में कुकड़ी नदी के किनारे ओझर नामक गाँव में स्थित है। यह भगवान गणेश के 'अष्टविनायक' पीठों में से एक है। अन्य मंदिरों की तरह ही विघ्नेश्वर का मंदिर भी पूर्वमुखी है और यहाँ एक दीपमाला भी है, जिसके पास द्वारपालक हैं। मंदिर की मूर्ति पूर्वमुखी है और साथ ही सिन्दूर तथा तेल से संलेपित है। इसकी आँखों और नाभि में हीरा जड़ा हुआ है, जो एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।

8. श्री महागणपति , रांजणगाव

रांजनगांव गणपति भगवान गणेश के अष्टविनायको में से एक है। इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति को “खोल्लम” परिवार ने भेट स्वरुप दिया और मंदिर का उद्घाटन भी किया। पुणे के स्थानिक लोगो के बीच यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। आपको इस बात को जानकर हैरानी होंगी की मंदिर के भगवान गणेश की मूर्ति को “महोत्कट” कहा जाता है और ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योकि मूर्ति की 10 सूंढ़ और 20 हाँथ है।



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