पितृपक्ष में इस विधान, मंत्रोच्चार कर्मकांड द्वारा अपने घर पर ही ऐसे करें जल से तर्पण

मरणोत्तर (श्राद्ध संस्कार) जीवन का एक अबाध प्रवाह है । काया की समाप्ति के बाद भी जीव यात्रा रुकती नहीं है । आगे का क्रम भी भली प्रकार सही दिशा में चलता रहे, इस हेतु मरणोत्तर संस्कार किया जाता है । सूक्ष्म विद्युत तरंगों के माध्यम से वैज्ञानिक दूरस्थ उपकरण का संचालन (रिमोट ऑपरेशन) कर लेते हैं । श्रद्धा उससे भी अधिक सशक्त तरंगें प्रेषित कर सकती है । उसके माध्यम से पितरों- को स्नेही परिजनों की जीव चेतना को दिशा और शक्ति तुष्टि प्रदान की जा सकती है । जीवात्माओं की शान्ति के लिए तीर्थों में भी श्राद्ध कर्म कराने का विधान है । श्राद्ध संस्कार में देवपूजन एवं तर्पण के साथ पञ्चयज्ञ करने का विधान है ।


पूर्व व्यवस्था-

श्राद्ध संस्कार के लिए सामान्य यज्ञ देव पूजन की सामग्री के अतिरिक्त नीचे लिखे अनुसार व्यवस्था पहले ही बना लेवें ।

 

- तर्पण के लिए पात्र ऊँचे किनारे की थाली, परात, पीतल या स्टील की टहनियाँ (तसले, तगाड़ी के आकार के पात्र) जैसे उपयुक्त रहते हैं । एक पात्र जिसमें तर्पण किया जाए, दूसरा पात्र जिसमें जल अर्पित करते रहें । इसके अतिरिक्त कुशा, चावल, जौ, तिल थोड़ी- थोड़ी मात्रा में रखें । पिण्ड दान के लिए लगभग एक पाव गुँथा हुआ जौ का आटा । जौ का आटा न मिल सके, तो गेहूँ के आटे में जौ, तिल मिलाकर गूँथ लिया जाए । पिण्ड स्थापन के लिए पत्तल, केले के पत्ते आदि । पिण्डदान सिंचित करने के लिए दूध- दही, मधु थोड़ा- थोड़ा रहे । पंचबलि एवं नैवेद्य के लिए भोज्य पदार्थ । सामान्य भोज्य पदार्थ के साथ उर्द की दाल की टिकिया (बड़े) तथा दही इसके लिए विशेष रूप से रखने की परिपाटी है । पंचबलि अर्पित करने के लिए हरे पत्ते या पत्तल लें । पूजन वेदी पर चित्र, कलश एवं दीपक के साथ एक छोटी ढेरी चावल की यम तथा तिल की पितृ आवाहन के लिए बना देनी चाहिए ।

 

1- इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्राद्ध करने का संकल्प करें ।


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये पर्राधे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, .......... क्षेत्रे, .......... विक्रमाब्दे .......... संवत्सरे .......... मासानां मासोत्तमेमासे .......... मासे .......... पक्षे .......... तिथौ .......... वासरे .......... गोत्रोत्पन्नः .............. नामाहं...... नामकमृतात्मनः प्रेतत्वनिवृत्ति द्वारा अक्षय्यलोकावाप्तये स्वकत्तर्व्यपालनपूवकं पितृणाद् आनृण्याथर् सर्वेषां पितृणां शान्तितुष्टिनिमित्तं पंचयज्ञ सहितं श्राद्धकर्म अहं करिष्ये ।।

 

2- इस मंत्र का उच्चारण करते हुए यम देवता का आवाहन व पूजन करें ।


ॐ यमाय त्वा मखाय त्वा, सूर्यस्य त्वा तपसे ।।
देवस्त्वा सविता मध्वानक्त, पृथिव्याः स स्पृशस्पाहि ।।
अचिर्रसि शोचिरसि तपोऽसि ॥
ॐ यमाय नमः ।। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।।

 

3- इस मंत्र का उच्चारण करते हुए पितरों का आवाहन पूजन करें ।

 

ॐ विश्वेदेवास ऽ आगत, शृणुता म ऽ इम हवम् ।। एदं बहिर्निर्षीदत ।। ॐ विश्वेदेवाः शृणुतेम हवं मे, ये अन्तरिक्षे यऽ उप द्यविष्ठ ।। ये अग्निजिह्वा उत वा यजत्रा, आसद्यास्मिन्बहिर्षि मादयध्वम् ।- ७.३४,३३.५३ ॐ पितृभ्यो नमः ।। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।।

 

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3- तर्पण


पितृ तर्पण


इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए पितरों का जल से तर्पण करते चले..

 

इस मंत्र के साथ पूजन करें- गोत्रोत्पन्नाः अस्मात् पितरः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलीन् ।।

 

अब तर्पण करते चले


1- पिता
अस्मत्पिता (पिता) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

2- दादा
अस्मत्पितामह (दादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो रुद्ररूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

3- परदादा
अस्मत्प्रपितामहः (परदादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

4- माँ
अस्मन्माता (माता) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा गायत्रीरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

5- दादी
अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा सावित्रीरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

5- परदादी
अस्मत्प्रत्पितामही (परदादी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा लक्ष्मीरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

6- सौतेली माँ
अस्मत्सापतनमाता (सौतेली माँ) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

नीचे उन्हीं के लिए तर्पण करें जो जीवित नहीं है-

 

7- पत्नी
अस्मत्पतनी अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

8- बेटा
अस्मत्सुतः (बेटा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥ सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥

 

9- बेटी
अस्मत्कन्याः (बेटी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

10- चाचा
अस्मत्पितृव्यः (चाचा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

11- मामा-
अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

12- सगा भाई
अस्मद्भ्राता (अपना भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

13- सौतेला भाई
अस्मत्सापतनभ्राता (सौतेला भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

14- बुआ
अस्मत्पितृभगिनी (बुआ) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

15- मौसी
अस्मान्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

16- सगी बहन
अस्मदात्मभगिनी (अपनी बहिन) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

17- सौतेली बहन
अस्मत्सापतनभगिनी (सौतेली बहिन) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

18-ससुर
अस्मद श्वशुरः (श्वसुर) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥


19- सास
अस्मद श्वशुरपतनी (सास) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

20- गुरु
अस्मद्गुरु अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः ॥

 

21- गुरु माता
अस्मद् आचायर्पतनी अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् ।। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः ॥

 

22- मुखमार्जन स्वतर्पण

मन्त्र के साथ अपना मुख धोये, आचमन करे ।। भावना करें कि अपनी काया में स्थित जीवात्मा की तुष्टि के लिए भी प्रयास करेंगे ।।
ॐ संवर्चसा पयसा सन्तनूभिः, अगन्महि मनसा स शिवेन ।। त्वष्टा सुदत्रो विदधातु रायः, अनुमाष्टुर् तन्वो यद्विलिष्टम ॥ तर्पण के बाद पंच यज्ञ का क्रम चलाया जाता है ।।

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