श्राद्ध भोजन करने से पहले इस खबर को एक बार जरूर पढ़े, अन्यथा आपके साथ हो सकता है ये..

शास्त्रों में श्राद्ध का भोजन हर किसी के लिए शुभ नहीं माना गया है, क्योंकि श्राद्ध का भोजन पितरों के नाम से किए गए आवाहनात्मक मंत्रों से प्रभारित होता है । इसलिए, वह वासनामय, अर्थात रज-तम से युक्त होता है, इसलिए शास्त्रों में ‘श्राद्ध का भोजन अशुभ माना गया है । इसके अतिरिक्त, लिंगदेहों के आगमन से वातावरण भी दूषित हो जाता है । इसलिए, श्राद्ध का भोजन ग्रहण करनेवालों को कष्ट होने की संभावना अधिक बनी रहती है । धर्मशास्त्र में श्राद्ध का भोजन करने के विषय में कुछ नियम बताए गए हैं । अगर इन नियमों का पालन किया जाए तो, इससे होने वाले कष्टों से बचा जा सकता है अथवा उसका प्रभाव कुछ कम किया जा सकता है । कितनी अच्छी और अद्भुत व्यवस्था हिन्दू धर्म में की गई है । श्राद्ध का भोजन किसी दूसरे के घर का नहीं ग्रहण करना चाहिए, लेकिन अपने कुल गोत्र के परिवार जन में भोजन करने पर कोई दोषृ नहीं लगता ।

 

साधक व्यक्ति को श्राद्ध का भोजन नहीं करना चाहिए
स्वाध्याय, अर्थात अपने कर्मों का चिंतन करना । मनन की तुलना में चिंतन अधिक सूक्ष्म होता है । अतः, चिंतन से जीव की देह पर विशिष्ट गुण का संस्कार दृढ होता है । सामान्य जीव रज-तमात्मक माया-संबंधी कार्यों का ही अधिक चिंतन करता है । इससे, उसके सर्व ओर रज-तमात्मक तरंगों का वायुमंडल निर्मित होता है । यदि ऐसे संस्कारों के साथ हम भोजन करने श्राद्धस्थल पर जाएंगे, तो वहां के रज-तमात्मक वातावरण का अधिक प्रभाव हमारे शरीर पर होगा, जिससे हमें अधिक कष्ट हो सकता है । यदि कोई व्यक्ति साधना करता है, तो श्राद्ध का भोजन करने से उसके शरीर में सत्त्वगुण की मात्रा घट सकती है । इसलिए, आध्यात्मिक दृष्टी से श्राद्ध का भोजन लाभदायक नहीं होता है ।
श्राद्ध का भोजन करने पर उस दिन पुनः भोजन करना


श्राद्ध का रज-तमात्मक युक्त भोजन ग्रहण करने पर, उसकी सूक्ष्म-वायु हमारी देह में घूमती रहती है । ऐसी अवस्था में जब हम पुनः भोजन करते हैं, तब उसमें यह सूक्ष्म-वायु मिल जाती है । इससे, इस भोजन से हानि हो सकती है । इसीलिए, हिन्दू धर्म में बताया गया है कि उपरोक्त कृत्य टालकर ही श्राद्ध का भोजन करना चाहिए ।’ कलह से मनोमयकोष में रज-तम की मात्रा बढ जाती है । नींद तमप्रधान होती है । इससे हमारी थकान अवश्य मिटती है, पर शरीर में तमोगुण भी बढता है ।

shraddha paksha

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