प्रथमपूज्य गणपति जी को भारत देश के अलावा विदेशों में भी पूजा जाता। भारत में गणपति जी को विघ्नहर्ता, लंबोदर, एकदंत स्परुप में पूजा जाता है, तो वहीं विदेशों में इनके अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है। विदेशों में कई हिस्सों में गणेश जी को अलग ही स्वरुप में पूजा जाता है। कहीं वे देश के लोगों की रक्षा दुष्टआत्माओं के रुप में करते हैं तो कहीं वे लोगों के बाधाहर्ता हैं। मान्यताओं के अनुसार गणेश जी की स्थापना नेपाल में सर्वप्रथम सम्राट अशोक की पुत्री चारुमित्रा ने की थी। गणपति जी की स्थापना के बाद यहां गणेश जी की पूजा-अर्चना बहुत ही उल्लास से की जाती है साथ ही गणेशोत्सव पर भी यहां खासा उत्साह देखने को मिलता है। यहां के लोग श्री गणेश को सिद्धिदाता और संकटमोचन के रूप में पूजते हैं। नेपाल के लोगों का कहना है की यहां स्थापित गणेश जी उन्हें सभी परेशानियों से बचाते हैं व उन्हें परेशानियों का हल प्रदान करते हैं।
जानिए अन्य देशों में किस रुप में पूजे जाते हैं गणेश जी
इंडोनेशिया - इंडोनेशियन द्वीप पर भारतीय धर्म का प्रभाव देखने को मिलता है, यह प्रभाव आज से नहीं बल्कि पहली शताब्दी से है। आपको बता दें की यहां रहने वाले भारतीयों के लिए गणेश जी की मूर्तियां विशेष रुप में भारत से मंगाई जाती है। यहां लोग गणेशजी को ज्ञान का प्रतीक मानते हैं। इंडोनेशिया में मौजूद 20 हजार के नोट पर भी गणेशजी की तस्वीर छपी हुई है।
तिब्बत- तिब्बत में लोग गणेश जी की पूजा करते हैं और उन्हें अपना संकटमोचन मानते हैं, यहां गणेश जी को दुष्टात्माओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है। भक्तों का कहना है की उन्हें गणपति सभी दुष्ट आत्माओं से दूर रखते हैं।
थाईलैंड - गणपति 'फ्ररा फिकानेत' के रूप में प्रचलित हैं। यहां इन्हें सभी बाधाओं को हरने वाले और सफलता के देवता माना जाता है। नए व्यवसाय और शादी के मौके पर उनकी पूजा मुख्य रूप से की जाती है। गणेश चतुर्थी के साथ ही वहां गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
श्रीलंका - श्रीलंका में गणेश जी के 14 प्राचीन मंदिर स्थित हैं। कोलंबो के पास केलान्या गंगा नदी के तट पर स्थित केलान्या में कई प्रसिद्ध बौद्ध मंदिरों में भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं। तमिल बहुल क्षेत्रों में काले पत्थर से निर्मित भगवान पिल्लयार, गणेश की पूजा की जाती है।
जापान - जापान में भगवान गणेश को 'कांगितेन' के नाम से जाना जाता हैं, जो जापानी बौद्ध धर्म से सम्बंध रखते हैं। कांगितेन कई रूपों में पूजे जाते हैं, लेकिन इनका दो शरीर वाला स्वरूप सर्वाधिक प्रचलित है। चार भुजाओं वाले गणपति का भी वर्णन यहां मिलता है।
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