कार्तिक मास में इन नियमों का पालन करने से समस्त पाप हो जाते हैं नष्ट, सभी तीर्थों का मिलता है पुण्य

हिंदू धर्म में कार्तिक मास को बहुत अधिक महत्व माना जाता है क्योंकि यह माह भगवान श्री कृष्ण को प्रिय माह है। इस माह में दान पुण्य, स्नान,ध्यान का अत्यधिक महत्व होता है। इस साल कार्तिक मास 23 अक्टूबर से लेकर 25 नवंम्बर तक रहेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही कार्तिक मास की व्याख्या करते हुए कहा है,की पौधों में तुलसी मुझे प्रिय है, मासों में कार्तिक मुझे प्रिय है, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के सबसे निकट है। पद्म पुराण में बताया गया है कि जो मनुष्य कार्तिक मास में तिल दान, नदी स्नान, साधू-संतों की सेवा, भूमि शयन, मौन व्रत का पालन करने से व्यक्ति को उसके युगों के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसे समस्त तीर्थों का पुण्य फल प्राप्त होता है। जैसे ही तुला राशि पर सूर्यनारायण आते हैं वैसे ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है। इस मास में तुलसी पूजा का बहुत महत्व है।

 

kartik maas

जानें कार्तिक मास में तुलसी पूजा का महत्व

पुराणों में कार्तिक माह का महत्व व कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। जो व्यक्ति अपने घर में हमेशा सुख शांति व सदैव सुख शान्ति की अपेक्षा रखता है उसे अपने घर में तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। जिस घर में शुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी हरी-भरी रहती है एवं जहां अशुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी कभी भी हरी-भरी नहीं रहती। वहीं कार्तिक मास में तुलसी के पास दीपक जलाने से मनुष्य अनंत पुण्य का भागी बनता है। जो तुलसी को पूजता है, उसके घर मां लक्ष्मी हमेशा के लिए आ बसती है, क्योंकि तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार गुणवती नामक स्त्री ने कार्तिक मास में मंदिर के द्वार पर तुलसी की एक सुंदर वाटिका लगाई। उस पुण्य के कारण वह अगले जन्म में सत्यभामा बनी और सदैव कार्तिक मास का व्रत करने के कारण वह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी बनी। कार्तिक मास में तुलसी पूजन से मनोवांछित फल और जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

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कार्तिक मास में इन नियमों का करें पालन

1. दीपदान करना होता है शुभ
कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

2. शरीर पर ना करें तेल का इस्तेमाल
पूरे कार्तिक महीने में शरीर में तेल लगाने की मनाही होती है। आप इस माह के दौरान केवल नरक चतुर्दशी के दिन ही तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं।

3. दाल और मासाहार का सेवन ना करें
कार्तिक मास में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए। इनके अलावा करेला, बैंगन और हरी सब्जियां आदि भारी चीज़ों का भी त्याग करना चाहिए।

4. जमीन पर सोना
भूमि पर सोना कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।

5. स्वयं पर संयम रखें
व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस दौरान तपस्वियों के समान व्यवहार करना चाहिए। इसी के साथ उसे चाहिए की वह कम बोलें, किसी की निंदा या विवाद न करें, मन पर संयम रखें आदि।



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