घर बैठे शादी विवाह के शुभ मुहूर्त निकालने का सटीक और आसान तरीका

भारतीय हिन्दू धर्म में विवाह संस्कार को मनुष्य के जीवन के सोलह संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है । इसलिए विवाह से पूर्व विशेष रूप से मुहूर्त देखा जाता हैं और उसकी गणना करते समय सभी तथ्यों को बारीकी से जांचा भी जाता है । हिन्दू पंचांग में कुल 27 नक्षत्र है परंतु उनमें से केवल कुछ ही जैसे- मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, हस्त, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा आषाढ़, उत्तरा भाद्रपद, स्वाति, मघा और रोहिणी आदि नक्षत्र को विवाह आदि के लिए शुभ माने गये है ।

ज्योतिषाचार्य पं. उदय किशोर मिश्रा ने बताय कि- विवाह से पूर्व शुभ मुहूर्त निकाल लेने से ऐसा माना जाता हैं कि वर-वधु का दाम्पत्य जीवन बेहतर होने के साथ उनके मध्य प्यार व ताल मेल भी हमेशा बना रहता हैं । जानिए की आप अपने घर पर ही विवाह जैसा पवित्र कर्म कब, किस मुहूर्त में करें और उस मुहूर्त की गणना आसान तरीके से कर सकते है ।

 

1- इन महीनों में ही करना चाहिए- शुभ नक्षत्र के साथ-साथ विवाह के लिए शुभ महीना का होना भी बहुत जरुरी माना जाता है, ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार साल के 12 महीनों में विवाह संस्कार केवल इन 6 महीनों में ही करना चाहिए- ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष और आषाढ़ माह में ही विवाह करना शुभ माना जाता हैं ।

 

2- घर बैठे ऐसे निकाले विवाह का शुभ मुहूर्त- विवाह संस्कार में कन्या के लिए गुरुबल और वर के लिए सूर्यबल पर मुख्य रूप से विचार किया जाता हैं, एवं दोनों के लिए एक साथ चंद्रबल पर विचार किया जाता हैं । अगर आपके पास कोई पंचांग हो तो उसमें विवाह मुहूर्त पहले से ही लिखे होते है जिनमें शुभ संकेत के रूप में खड़ी रेखाएं और अशुभ संकेत के रूप में टेढ़ी रेखाएं होती है । ज्योतिष के अनुसार कुल दस दोष बताएं जाते है, जिस विवाह के मुहूर्त में जितने दोष नहीं होते है, उतनी ही खड़ी रेखाएं होती हैं और दोष संकेत टेढ़ी रेखाएं मानी जाती हैं । सर्वश्रेठ मुहूर्त दस रेखाओं का होता है । जबकि मध्यम सात से आठ रेखाओं का होता है और जघन्य पांच रेखाओं का होता है । और इससे कम रेखाओं के मुहूर्त को निन्द्य कहा जाता है ।

 

3- कन्या के लिए गुरुबल - कन्या की राशि में बृहस्पति यदि नवम, पंचम, एकादश, द्वितीया और सप्तम भाव में हो तो शुभ माना जाता हैं और इसके अलावा बृहस्पति के दशम, तृतीया, षष्ठ और प्रथम भाव में होने पर दान देना शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश भाव में अशुभ होता है ।


4- वर के लिए सूर्यबल - वर की राशि में सूर्य यदि तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश भाव में हो तो शुभ माना जाता है । इसके अलावा सूर्य के प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम और नवम भाव में होने पर दान देना शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश भाव में अशुभ होता है ।

 

5- वर वधु दोनों के लिए चंद्रबल - वर और कन्या दोनों की ही कुंडली में चंद्रबल देखा जाता है । पंचांग के अनुसार चंद्रमा वर और कन्या की राशि में तीसरे, छठे, सातवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ मना जाता है । इसके अलावा चंद्रमा यदि पहले, दुसरे, पांचवें और नौवें भाव में हो तो दान देना शुभ माना जाता है और चौथे, आठवें, बाहरवें भाव में अशुभ होता है ।

 

6- अन्धादि लग्न - दिन में तुला और वृश्चिक, रात्रि में तुला और मकर बधिर है । तथा दिन में सिंह, मेष, वृष और रात्रि में कन्या, मिथुन, कर्क अंध संज्ञक हैं । दिन में कुम्भ और रात्रि में मीन लग्न पंगु होते है । धनु, तुला, वृश्चिक, ये तीनो अपराह्न में बधिर माने जाते हैं, जबकि मिथुन, कर्क व् कन्या ये लग्न रात्रि में अंधे होते है । सिंह, मेष, वृष ये लग्न दिन में अंधे होते है और मकर, कुम्भ, मीन प्रातःकाल तथा सायंकाल में कुबड़े होते है । यदि विवाह बधिर लग्न में हो जाये तो वर-कन्या दोनों दरिद्र हो जाते है, और यदि दिवान्ध में लग्न हो तो कन्या विधवा हो जाती है, यदि रात्रान्ध में लग्न हो तो सन्तति मरण और पंगु में लग्न हो तो धन नाश होता है । वहीं विवाह के लिए शुभ लग्न तुला, मिथुन, कन्या, वृष और धनु माने जाते है । जबकि अन्य सभी लग्न मध्यम ही माने जाते है ।



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