देशभर में देवी मां के अनेकों मंदिर अपनी अलग विशेषता व चमत्कारों के लिए विख्यात हैं। ऐसा ही एक मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में बेल्हा देवी का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। यहां लोग देवी मां से अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं, मां बेल्हादेवी धाम में सच्चे मन से मांगी गई मुरादें जरुर ही पूरी होती हैं। यहां कुछ लोग तो नियमित रूप से मां के दर्शन को पहुंचते हैं। नवरात्र में मां के अलग-अलग स्वरूपों का श्रृंगार किया जाता है। यहां के पुजारी बताते हैं की मां के दरबार में रात में व सुबह आरती की जाती है। बेल्हा देवी मंदिर में लोग अपने बच्चों का मुंडन, कर्ण छेदन आदि संस्कार करवाते हैं और मंदिर में मांगलिक कार्य भी होते हैं।
इस धाम को शक्ति पीठ का दर्जा हासिल है। कहते हैं कि यहां माता सती का कमर वाला हिस्सा (बेला) गिरा था। यहां सोमवार व शुक्रवार को मेला लगता है, जिसमें बेल्हा के साथ आसपास के जिलों के लोग भी आते हैं। नवरात्र में यहां लोगों का सैलाब मां के दर्शन को पहुंचता है। बेल्हा मंदिर को लेकर लोगों का मानना है की यहां राम वनगमन मार्ग के किनारे सई नदी को श्रेता युग में भगवान राम ने पिता की आज्ञा से वन जाते समय पार किया था और यही उन्होंने पूजन कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ऊर्जा ली थी। वहीं मंदिर को लेकर दूसरी किवदंती यह भी है की चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय भरत ने यहां पूजन किया था। जिसके बाद ही यह मंदिर लोगों के अस्तित्व मेें आया और यहां लोगों की आस्था बढ़ने लगी।
इतिहास में मंदिर को लेकर मान्यता
मंदिर को लेकर एक इतिहास भी बताया जाता है, एम.डी.पी.जी. कॉलेज के प्रोफेसर का कहना है की यहां चाहमान वंश के राजा पृथ्वी राज चौहान की बेटी बेला थी जिसका विवाह इसी क्षेत्र के ब्रह्मा नामक एक युवक से हुआ था। बेला के विदाई के ही दिन ब्रह्मा की मृत्य हो गयी थी, इस गम को बेला झेल नहीं पाई जिसके कारण बेला ने इसी नदी में खुद को सती कर लिया इसलिए इसे जगह को सती स्थल के नाम से भी जाना जाता है।
इलाहाबाद-फैजाबाद मार्ग पर सई तट पर स्थित मां बेल्हा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए बहुत ही आसान रास्ता है। इलाहाबाद व फैजाबाद की ओर से आने वाले भक्त सदर बाज़ार चौराहे पर उतरकर पश्चिम की ओर गई रोड से आगे जाकर दाहिने घूम जाएं। लगभग दो सौ मीटर दूरी पर मां का भव्य मंदिर विराजमान है।
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