कर्नाटक के उडुपी जिले के कोल्लूर में स्थापित मां दुर्गा का मंदिर बहुप्रसिद्ध है। यह मंदिर करीब 1200 साल पुराना मंदिर है। घने जंगलों के बीच ऊंची पहाड़ियों पर बना यह मंदिर सातमुक्ति स्थलों में से एक मंदिर है। यह भव्य व खूबसूरत मंदिर मूकाम्बिका मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर में देवी आदि महालक्ष्मी रूप में विराजमान हैं। मूकांम्बिका मंदिर में तीन पहर में तीन रूपों की पूजा की जाती है। सुबह यहां महाकाली के रूप में, दोपहर में महालक्ष्मी के रूप में और शाम में महा सरस्वती के रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर कर्नाटक और केरल राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
मंदिर को लेकर पौराणिक कथा
किंवदंतियों के अनुसार कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर में एक कौमसुरा नामक एक राक्षस रहता था। उसने भगवान शिव से विशेष शक्ति प्राप्त की थी और इन शक्तियों से उसने संसार में आतंक फैला रखा था। सभी देवता उस राक्षस से दुरी बनाकर रखते थे, उसके बाद उन्हें अचानक कहीं से यह खबर लगी की राक्षस की मृत्यु होने वाली है। यह बात राक्षस को भी पता चली जिसके बाद उसने शिव जी की घोर तपस्या शुरु कर दी। भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और उसे पूछा की क्या वरदान चाहिए। इस राक्षस को वरदान देने के गंभीर खतरे को जानकर भाषण की देवी सरस्वती ने इसकी बोलने की क्षमता को छीन लिया। और इस कारण कौमासुरा का नाम मुकासुरा यानि मूक राक्षस पड़ा। इसके बाद सर्वोच्च देवी दुर्गा देवी ने सब देवताओं की शक्ति जुटाई और इस राक्षस का वद्ध कर दिया। तब से इस देवी मंदिर का नाम मूकाम्बिका पड़ा।
मंदिर का प्रमुख आकर्षण
पहाड़ी इलाके के इस सुंदर एवं भव्य मंदिर में एक ज्योतिर्माया शिवलिंग स्थित है जिसके बीच में एक स्वर्ण रेखा है जो शक्ति का एक चिन्ह है। कहते हैं कि छोटा हिस्सा जागृत शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जोकि ब्रह्मा, विष्णु और शिव के त्रिमूर्ति रुप का आदर्श रूप है और बड़ा हिस्सा सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी के रचनात्मक स्त्री बल का प्रतीक है। इस ज्योतिर्लिंग के पीछे स्थित देवी मूकाम्बिका की सुंदर धातु की मूर्ति को श्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। इस प्राचीन मंदिर में एक पवित्र सिद्दी क्षेत्र भी है जिसके साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। मंदिर में प्रमुख रूप से नवरात्रि में सरस्वती पूजा आयोजित की जाती है जिसमें सैकड़ों तीर्थयात्री आते हैं।
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