इतिहास के पन्ने बताते है कि मनुष्य जीवन की उत्पत्ति से भी पहले भी कुछ ऐसी महाशक्तियां थी जिसे पूरे ब्रह्माण्ड का संचालन होता आया हैं, और बाद में मनुष्य की आस्था व पूजा के आधार भी यही शक्तियां बनी, जिन्हें वेदों मे पंच देवों की उपाधि दी गई हैं, सभी धर्मों के जानकार लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का समुद्र मानते हैं । वहीं भारतीय प्राचीन ऋषियों ने सबके लिए इतनी सरल पूजा-पद्धति का आविष्कार किया जिसमें माध्यम से कोई भी उपासक ईश्वर प्राप्ति के सरल मार्ग पर चलकर ईश्वर को पा सकता हैं । साथ विभिन्न देवों की मूर्तियों की स्थापना कर उनकी पूजा से आस्था को जागृत करने का प्रयास भी किया जाता हैं, और कहा जा हैं कि इनकी पंच देवों की पूजा से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं ।
वहीं कुछ धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि महाभारत काल तक अर्थात द्वापर युग के अंत तक देवी - देवता धरती पर ही रहते थे और वे भक्तों के समक्ष कभी भी प्रकट हो जाते थे, इसलिए शायद उस समय में मूर्ति पूजा नहीं होती होगी । हिन्दू धर्म के धर्मग्रंथ वेद, उपनिषद और गीता में भी मूर्ति पूजा की कहीं उल्लेख नहीं मिलता । वेद शास्त्र की माने तो ईश्वर एक ही और उनके प्रतिरूप अनेक है, हिंदू धर्म में मुख्य रूप से पांच प्रमुख देवी देवताओं की पूजा करने का विधान बताया गया हैं ।
पंच देव
1- सूर्य - सूर्य अर्थात सविता जिसे जीवन दाता, स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता का देवता माना जाता हैं ।
2- विष्णु - विष्णु अर्थात नारायण जिसे पालन कर्ता, शांति व वैभव का देवता माना जाता हैं ।
3- शिव - शिव कहते महाकाल को कल्याण से संहार भी करता हैं इसलिए ये ज्ञान व विद्या देवता माने जाते हैं ।
4- शक्ति - शक्ति अर्थात दुर्गा जो संगठन, शक्ति व सुरक्षा की देवी मानी जाती हैं ।
5- गणेश - गणेश जी को प्रथम पूजनीय, मंगलकारी विघ्नहर्ता, बुद्धि व विवेक का देवता माना जाता हैं ।
मूर्तियां के प्रकार
1- एक तो वे जो वास्तु और खगोल विज्ञान के जानकार थे, उन्होंने तारों और नक्षत्रों के मंदिर बनाए और इस प्रकार के दुनियाभर में सात मंदिर थे ।
2- दूसरे वे, जिन्होंने अपने पूर्वजों की मरने के बाद उनकी याद में मूर्ति बनवाते थे ।
3- तीसरे वे, जिन्होंने अपने-अपने देवता मन में गढ़ लिए थे और हर कबीले का एक देवता होता था, जिसे कुलदेवता या कुलदेवी कहा जाती थी ।
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