भगवान सूर्यदेव सृष्टि के प्रत्यक्ष देवता हैं कहा जाता है कि सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य देव की विशेष वंदना करने से अनेक प्रकार के कष्ट हमेशा के लिए दूर हो जाते है । ऋषि याज्ञवल्क्य जी ने मनुष्य को आपदाओं, संकट, धन का अभाव, और बुरी शक्तियों के साथ-साथ दुश्मनों से भी बचाने के उद्देश्य से श्री सूर्य रक्षा कवच की रचना की थी, इसका पाठ कभी किया जा सकता हैं, लेकिन सूर्यग्रहण वाले दिन इसका श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं । कहा जाता हैं कि अगर कोई व्यक्ति इस कवच की स्थापना अपने घर पर करता हैं तो सूर्य भगवान की कृपा से उन्हें और उनके परिवार को किसी भी ज्ञात अज्ञात शत्रु से रक्षा होती हैं । धन की समस्या भी दूर हो जाती हैं ।
।। अथ सूर्यकवचम ।।
सूर्यग्रहण काल में शांत चीत होकर इस रक्षा कवच का पाठ स्वयं एवं परिवार के सभी सदस्यों के सात करना चाहिए ।
1- श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम् ।।
अर्थात- यह सूर्य कवच शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है ।
2- देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम ।
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् ।।
अर्थात- चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें ।
3- शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति: ।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर: ।।
अर्थात- मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें । नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें ।
4- ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन: ।
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: ।।
अर्थात- मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें ।
5- सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके ।
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय: ।।
अर्थात- सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं ।
6- सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस: ।
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति ।।
अर्थात- स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है ।
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