हस्तिनापुर के इस शिव मंदिर में भोलेनाथ पूरी करते हैं हर मन्नत, युधिष्ठिर ने भी मंगी थी मुराद

हस्तिनापुर भारत के प्रमुख व मशहुर स्थानों में से एक स्थान है। इस जगह को ना सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी लोग जानते हैं। क्योंकि इसका महाभारत में वर्णित कई घटनाओं से संबंध है। महाभारत से जुड़ी लगभग कई घटनाएं हस्तिनापुर से जुड़ी हुई है और आज भी वहां कई बातों के साक्ष्य नजर आते हैं। जिन्हें देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। यह जगह दिल्ली से 110 किमी और क्रांतिधरा मेरठ से करीब 38 किमी की दूरी पर गंगा किनारे बसा है। जो की एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। हस्तिनापुर जैन, हिंदू एवं सिख धर्म का पवित्र स्थल है। इसी पवित्र नगरी में एक प्रसिद्ध शिव मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर को लेकर लोगों की मान्यताएं हैं की यहां आने वाले भक्त बाबा भोलेनाथ से मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद लेकर जाते हैं। हस्तिनापुर का यह प्रमुख मंदिर पांडेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

pandeshwar mahadev mandir

मंदिर में होती है हर मनोकामना पूरी

हस्तिनापुर सुंदर स्थानों में शामिल है, यहां वन जंगल और झीलें लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां हर साल लाखों श्रृद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर परिसर स्थित प्राचीन विशाल वट वृक्ष है। इस वृक्ष के नीचे भी श्रद्धालु दीपक जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। यहीं पर प्राचीन शीतल जल का कुआं स्थित है। इसका जल श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं। इस जल के घर में छिड़कने से शांति मिलती है। पांडवेश्वर मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालु पूजा-अर्चना कर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। किवदंती है कि महाभारतकाल में पांडु पुत्र युधिष्ठिर ने धर्मयुद्ध से पूर्व यहां शिवलिंग की स्थापना कर बाबा भोलेनाथ से युद्ध में विजयी होने की मन्नत मांगी थी। यही नहीं मंदिर के समीप गंगा की धारा बहती थी। द्रौपदी प्रतिदिन इस मंदिर में पूजा-अर्चना करती थीं। मंदिर परिसर के बीच में शिवलिंग स्थित है।

महाभारतकालीन में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार

महाभारतकालीन इस मंदिर का जीर्णोद्धार बहसूमा किला परीक्षितगढ़ के राजा नैन सिंह ने 1798 में कराया था। मंदिर में लगी पांच पांडवों की मूर्ति महाभारतकालीन है। इसका अंदाजा उनकी कलाकृति से लगता है। यहां स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है। यह शिवलिंग जलाभिषेक के चलते आधा रह गया है।



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