केरल के ही तिरुच्चूर रेलवे स्टेशन से 32 किलो मीटर दूरी पर गुरुवायूर मंदिर स्थित है। यहां स्थापित भगवान गुरुवायूरप्पा केरल के कई परिवारों के कुलदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। गुरुवायुरप्पन श्री कृष्ण का बाल रूप है। वैसे तो यह मंदिर श्री कृष्ण को समर्पित है, लेकिन यहां भगवान विष्णु के दस अवतारों को भी दर्शाया गया है। मंदिर में आदि शंकराचार्य कुछ समय रुक थे। श्रीविल्वमंगल की आराधना का बहुत समय यहीं बीता था। जिसके बाद उन्होंने यहां की पूजा पद्धति में कुछ संशोधन किये थे और आज भी यहां आदि शंकराचार्य के नियमानुसार ही पूजा आराधना की जाती है। कहा जाता है की गुरुवायुर मंदिर में एकादशी और उल्सवम का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। उल्सवम त्यौहार के दौरान यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य का आयोजन किया जाता है। यहां आए भक्तों का मानना है की गुरुवायुरप्पा जी के दर्शन से मन में शांती मिलती है और सभी मनोकामनाएं भी जल्द पूरी होती है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर में स्थित मूर्ति पहले द्वारका में स्थापित थी। एक बार द्वारका पुरी जब पूरी तरह जलमग्न हो गया तब यह मूर्ति बाढ़ में बह गई। कृष्ण जी की यह मूर्ति बृहस्पति देव को तैरती हुई दिखी। उन्होंने वायु देवता की सहायता से इस मूर्ति को बचाया तथा उचित स्थान पर स्थापित करने के लिए निकले। उचित स्थान की खोज में वह केरल पहुंच गए, जहां उन्हें भगवान शिव और देवी पार्वती के दर्शन हुए। भगवान की आज्ञा से उन्होंने मूर्ति की स्थापना केरल में ही की। क्योंकि इस मूर्ति की स्थापना गुरु और वायु ने की इसलिए इसका नाम 'गुरुवायुर' रखा गया। माना जाता है कि गुरूवायूर मंदिर उन कुछ भारतीय मंदिरों में से एक है जहां आज भी गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है।
मंदिर में आज भी रखे है सिंग लगे नारियल
किवदंतियों के अनुसार कहा जाता है की एक बार एक किसान फसल का पहला नारियल भगवान गुरुवापूर को चढ़ाने आ रहा था। मंदिर जाते समय उसे रास्ते में कुछ डाकू मिल गये। किसान ने डाकुओं से प्रार्थना की और कहा- सब कुछ ले लो, लेकिन भगवान को चढ़ाने के नारियल छोड़ दो। पर डाकू नहीं माने और बोलने लगे ‘गुरुवायूर के नारियलों में क्या सींग लगे हैं?’ इतना कहने के बाद सचमुच उन नारियलों में सींग निकल आये और डाकू डरकर भाग गये। इस घटना के बाद सिंग लगे नारियल आज भी मंदिर में सुरक्षित हैं।
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