देवि देवताओं की दैनिक या अन्य पर्व त्यौहारों में होने वाले पूजा पाठ में पूजा करने वाले पंडित या भक्त श्रद्धालु कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य रूप से करते ही है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी पूजा पाठ, यज्ञ या विशेष आरती समाप्त होने के बाद इस अलौकिक चमत्कारी मंत्र का उच्चारण करने से पूजा सफल भी मानी जाती हैं और प्रसन्न होकर भगवान अपने भक्ति ही हर मनोकामना पूरी कर देते हैं ।
शास्त्रोंक्त ऐसी मान्यता भी हैं की इस मंत्र के उच्चारण के बिना पूजा पाठ के आयोजन अधुरे ही माने जाते हैं । इसलिए पूजा के बाद होने वाली आरती के समपन्न होते ही इस मंत्र का उच्चारण करना ही चाहिए । शास्त्रों में इस मंत्र को भगवान शिव जी की अति प्रिय मंत्र बताया गया हैं, और वह मंत्र हैं- कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र ।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।
- इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं । भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा की गई थी । ये स्तुति इसीलिए गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें, औऱ हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें ।
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