यहां लगता है अजीबोगरीब मेला, इंसानों के साथ भूत-प्रेत भी होते हैं शामिल

बैतूल जिले से करीब 42 किलोमीटर दूर चिचौली तहसील के गांव मलाजपुर में हर साल मकर संक्रांति की पहली पूर्णिमा से भूतों का मेला शुरू होता है, जो महीने भर चलता है। बसंत पंचमी तक यह मेला चलता है और यहां बड़ी संख्या जबलपुर सहित आसपास के जिलों से लोग पंहुचते हैं। यहां मौजूद पेड़ों पर भूत-प्रेत का वास होता है। इस अजीबो-गरीब मेले को देखने पहुंचे लोगों के होश उड़ जाते हैं। भूत मेला समाप्त होने के कुछ माह बाद से ही पुन: इसके लगने का इंतजार शुरू हो जाता है।

दरअसल बैतुल में बंधारा नदी किनारे पर मलाजपुर के बाबा के समाधि स्थल है जिसके आसपास के पेड़ों की झुकी डालियां उलटे लटके भूत-प्रेत की याद ताजा करवा देती हैं। माना जाता है कि जिस व्यक्ति के शरीर में प्रेत-बाधा होती है उसके शरीर के अंदर से प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उलटा लटक जाती है। भूत-प्रेत बाधा निवारण के लिए गुरु साहब बाबा के मंदिर पूरे भारत में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। बाबा की समाधि के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा के हाथ-पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटक कर कर माफी मांगने के लिए पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब कि उसके शरीर से वह तथाकथित भूत यानी कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती।

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समाधि पर जाते ही बोलने लगते हैं भूत-प्रेत

जिस किसी व्यक्ति को भूत-प्रेत लगे होते हैं उसे सबसे पहले बंधारा नदी में स्नान करवाया जाता है। उसके बाद पीड़ित व्यक्ति को गुरु साहब बाबा की समाधि पर लाया जाता है। जहां गुरु साहब बाबा के चरणों पर नमन करते ही पीड़ित व्यक्ति झूमने लगता है और उसके शरीर में एक अलग ही शक्ति आने लगती है जिससे उसकी सांसे तेज हो जाती है और आंखे लाल होकर एक जगह स्थिर हो जाती हैं। इतना होने के पश्चात जैसे ही बाबा की पूजा प्रक्रिया प्रारंभ होती है वैसे ही प्रेत-बाधा पीड़ित व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है, पीड़ित व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है। इस अवस्था में पीड़ित आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है। एक बात तो यहां पर दावे के साथ कही जा सकती है कि, प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाते है।

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कुत्ते भी आरती में होते हैं शामिल

मान्यताओं के अऩुसार यहां हर रोज़ शाम को आरती होती है। यहां आरती की विशेषता यह है कि दरबार में आरती के समय यहां के कुत्ते भी आरती में शामिल होते हैं और शंक, करतल ध्वनि में अपनी आवाज मिलाते है। इसको लेकर महंत का कहना है कि यह बाबा का आशीर्वाद है।

मकर संक्राति के बाद पूर्णिमा पर लगता है मेला

प्रतिवर्ष मकर संक्राति के बाद वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस भूतों के मेले में आने वाले सैलानियों में देश-विदेश के लोगों की संख्या काफी होती है। यह मेला एक माह तक चलता है। ग्राम पंचायत मलाजपुर इसका आयोजन करती है। कई अंग्रेजों ने पुस्तकों एवं उपन्यासों तथा स्मरणों में इस मेले का जिक्र किया है। इन विदेशी लेखकों के किस्सों के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले में स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब के मेले में आता है।



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