पावागढ़ माता का मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि पावागढ़ में मां के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था, इस कारण इस जगह का नाम पावागढ़ हुआ। मां के इस धाम में माता की चुनरी का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहा जाता है जिसे भी यहां की चुनरी या मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है, वह बहुत ही भाग्यशाली होता है। पावागढ़ माता शक्तिपीठ का आशीर्वाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी प्राप्त हुआ। मंगलवार को लोकसभा के तीसरे चरण का मतदान हुआ। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृहराज्य गुजरात में वोट डालने पहुंचे थे। वोट डालने से पहले मोदी ने गांधीनगर जाकर मां हीराबेन का आशीर्वाद लिया। मां ने अपने बेटे को जीत का आशीर्वाद देते हुए माथे पर तिलक लगाया और उन्हें पावागढ़ माताजी की चुनरी भेंट की। आइए जानते हैं मंदिर के बारे में खास बातें और यहां का महत्व...
करीब 550 मीटर की ऊंचाई पर है मंदिर
देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक देवी का यह मंदिर गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित है। दक्षिणमुखी मां काली का यह मंदिर पावागढ़ की ऊँची पहाड़ियों के बीच तकरीबन 550 मीटर की ऊंचाई पर है। शक्ति के उपासकों के लिए माता का यह मंदिर अत्यंत सिद्ध स्थान है। इस मंदिर में मां काली की दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है जिनकी पूजा तंत्र-मंत्र से होती है। माता के इस मंदिर को शत्रुंजय मंदिर भी कहा जाता है। मान्यता है कि माता की इस भव्य मूर्ति की स्थापना स्वयं विश्वामित्र मुनि ने की थी। चूंकि काली माता की मूर्ति दक्षिणमुखी है, ऐसे में इसकी साधना-अराधना का विशेष महत्व है। यहां पर शत्रु, रोग आदि पर विजय पाने की कामना लिए हजारों-हजार भक्त पहुंचते हैं। देश के विभिन्न शक्तिपीठों की तरह यहां पर भी माता को अन्य प्रसाद सामग्री के साथ लाल रंग की चुनरी चढ़ाई जाती है। जिसे भक्तगण माता से मिले आशीर्वाद के रूप में अपने साथ ले जाते हैं।
विश्वामित्र ने की थी काली की तपस्या
पावागढ़ की पहाड़ी का संबंध गुरु विश्वामित्र से भी रहा है। मान्यता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहां माता काली की तपस्या की थी और उन्होंने ही मूर्ति को स्थापित किया था। यहां बहने वाली नदी का नाम भी उन्हीं के नाम पर विश्वामित्री पड़ा। माता के दरबार में पैदल पहुंचने वाले भक्तों को तकरीबन 250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। हालांकि माता के दर्शन को पहुंचने के लिए रोपवे की सुविधा भी है।
पावागढ़ धाम की कहानी
पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी प्रचलित है। जिसके अनुसार कहा जाता है कि पावागढ़ पर्वत पर चढ़ाई करना किसी के लिए भी संभव नहीं था। मंदिर के चारों तरफ घने जंगल और खाइयां थी। इन गहरी खाइयों से मंदिर के घिरे होने के कारण हवा का वेग भी चारों ओर से था। यही कारण है की इस शक्तिपीठ का नाम पावागढ़ पड़ा। पावागढ़ का अर्थ- ऐसी जगह कहा गया जहां हमेशा पवन यानी हवा का वास हो।
हर मनोकामना होती है पूरी
मान्यताओं के अनुसार यहां भक्तों द्वारा मां से सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। नवरात्र के समय इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मुरादें पूरी होने का आशीर्वाद लेकर जाते हैं।
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