भगवान परशुराम को महान तपस्वी और योद्धा कहा जाता है। भगवान परशुराम को हत्या की ग्लानि से मुक्ति के लिए कठोर तपस्या करना पड़ा था। कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने अपनी माता की हत्या की आत्मग्लानि से मुक्ति पाने के लिए शिवलिंग की स्थापना कर यहां घोर तपस्या की थी।
यह शिवलिंग आज भी मौजूद है। उत्तर प्रदेश के बागपद जनपद के पुरा गांव में परशुरामेश्वर महादेव मंदिर है। इस मंदिर को पौराणिक और ऐतिहासिक पवित्र स्थल माना जाता है। यहां साल में दो बार कांवर मेला लगता है। इस दौरान 20 लाख से अधिकक श्रद्धालु कांवर लेकर आते हैं और शिवलिंग जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि यहां जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह जरूर पूरी हो जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह क्षेत्र पहले कजरी वन के नाम से जाना जाता था। इसी वन में परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका और पुत्रों के साथ रहते थे। एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार के लिए कजरी वन में आए तो रेणुका ने कामधेनु के चलते उनका राजसी भोज से सत्कार किया।
राजा ने कामधेनु को अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई तो रेणुका ने इनकार कर दिया, जिस पर क्रोधित होकर राजा रेणुका को जबरन अपने महल में ले गया। वहां तरस खाकर सहस्त्रबाहु की रानी ने उन्हें चुपके से मुक्त कर दिया। रेणुका आश्रम लौटी तो जमदग्नि ने रेणुका को अपवित्र बताकर आश्रम से जाने का आदेश सुना दिया।
रेणुका ने जमदग्नि से मोक्ष प्राप्ति के लिए उसका गला दबा देने की गुहार लगाई, जिसपर जमदग्नि ने वहां मौजूद चारों पुत्रों को अपनी माता की हत्या करने का आदेश दिया। तीन पुत्रों ने इसे महापाप बताते हुए आदेश मानने से इनकार कर दिया। लेकिन परशुराम ने पिता के आदेश का पालन करते हुए एक ही झटके में माता का सिर धड़ से अलग कर दिया।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, माता की हत्या की ग्लानि से परशुराम काफी अशांत हो गए। आत्मशांति के लिए कजरी वन के करीब ही शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव की घोर तपस्या की। शिव ने प्रसन्न होकर वरदान के रूप में उनकी माता रेणुका को भी जीवित कर दिया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार रुड़की स्थित कस्बा लंढौरा की रानी यहां से गुजर रही थीं, तो उनका हाथी इस स्थान पर आकर रुक गया। महावत की तमाम कोशिशों के बावजूद हाथी एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा।
इसके बाद रानी ने नौकरों से यहां खुदाई कराई तो वहां शिवलिंग के प्रकट होने पर आश्चर्य चकित रह गईं। रानी ने यहां पर एक शिव मंदिर का निर्माण कराया। तब से लेकर आज तक यहां साल में दो बार कांवर मेला लगता है। श्रद्धालु हरिद्वार से कांवर लेकर आते हैं और भोलेनाथ पर जलाभिषेक करते हैं।
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