हिन्दू शास्त्रों में शनिदेव को न्याय का देवता कह जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, शनिदेव ने कई वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी। शनिदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने वरदान मांगने को कहा। इसके बाद शनिदेव ने भोलेनाथ से कहा कि दुनिया में कर्म के आधार पर सजा देने की कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि सजा का प्रवधान नहीं होने के कारण हर कोई मनमानी कर रहा है।
इसके बाद शनिदेव ने कहा कि आफ मुझमें ऐसी शक्ति प्रदान करें, जिससे कि मैं लोगों को कर्म के आधार पर दंड दे सकूं। शनिदेव की बात सुनकर शिवजी ने उन्हें दंडाधिकारी नियुक्त कर दिया। उसके बाद से ही शनिदेव लोगों को कर्म के आधार दंड देने लगे। लेकिन क्या आप जानते हैं शनिदेव को भी दंड मिला था।
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दरअसल, वरदान मिलने के बाद शनिदेव कर्म के आधार पर सभी को सजा देने लगे। जैसे-जैसे समय बीतने लगा शनिदेव को अपनी शक्ति पर घमंड होने लगा। पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन शनिदेव भ्रमण पर निकले तो उन्होंने देखा कि लंका जाने वाला सेतु पर ध्यानमग्न हैं। इसके शनिदेव हनुमान जी का ध्यान हटाने की कोशिश की लेकिन हनुमान जी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
इसके बाद हनुमान जी ने शनिदेव को मना भी किया लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद शनिदेव ने हनुमान जी युद्ध की चुनौती भी दे डाली। पहले तो हनुमान जी युद्ध करने से मना कर दिया। इसके बावजूद शनिदेव युद्ध के लिए चुनौती देते रहे। कथा के अनुसार, मजबूर होकर हनुमान जी ने शनिदेव के साथ युद्ध किया और पूंछ में बांधकर शनिदेव की खूब पिटाई की।
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युद्ध में शनिदेव की हार हो गई। कथा के अनुसार, शनिदेव की हालत देखकर हनुमान जी ने उनके शरीर में तेल लगाया, जिसके बाद उनकी पीड़ा खत्म हो गई। बताया जाता है कि तब से ही शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा है
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