शनिवार : हनुमान जी की इस इच्छा पूर्ति महा सुखदायी स्तुति का पाठ करने से पूरन हो जाते हैं सार काम

भगवान शिवजी के रूद्र अवतार पवन पुत्र अजंनी नंदन श्रीराम भक्त हनुमान जी महाराज कलयुग में सभी कामनाओं को पूरा करने वाला परम महा सुखदायी कहे जाते हैं। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम एवं माता सीता ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को अमर-अजर रहने और सभी सेवा सहायता का वरदान दिया था। आज भी हनुमान जी की कृपा के चमत्कार अनेकों को होते हैं। जिनके ऊपर इनकी कृपा हो जाये, उस भक्त के जीवन के सभी संकटों का नाश स्वतः ही होने लगता है।

 

भगवान पर चढ़े फूल का कर लें यह उपाय, चारो ओर से अचानक बढ़ जायेगी इनकम

 

शनिवार के दिन अतुलित बल के धाम की कोई मंत्र जप करके उपासना करता है, तो कोई हनुमान आरती , हनुमान चालीसा या फिर सुंदरकांड का पाठ करके उनकों प्रसन्न करने का प्रयत्न करते है। अगर आप अपने शत्रुओं से मुक्ति चाहते हैं, सभी समस्याओं का निदान चाहते हैं शनिवार के सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कभी भी, भक्त शिरोमणी हनुमान जी की इस स्तुति का पाठ अपने घर में ही या संभव हो तो हनुमान मंदिर में जाकर करें। निश्चित ही हनुमान जी आपके उपर कृपा करेंगे।

 

।। हनुमान जी की वंदना ।।

मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम्।।
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे।।

पचमड़ी के बड़ा महादेव, घर बैठे भी मिलेगा आशीर्वाद, कर लें ये छोटा सा काम

 

।। अथ हनुमान महा सुखदायी स्तुति।।

आरती किजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरवर कांपे। रोग दोष जाके निकट ना झांके॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये। लंका जाये सिया सुधी लाये॥

लंका सी कोट संमदर सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे। सियाराम जी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे। आनि संजिवन प्राण उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावन की भुजा उखारे॥

 

हमेशा के लिए पैसों की समस्या हो जायेगी दूर, घर में ही कर लें इन 10 में से कोई भी एक उपाय

 

बायें भुजा असुर दल मारे। दाहीने भुजा सब संत जन उबारे॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई। आरती करत अंजनी माई॥
जो हनुमान जी की आरती गाये। बसहिं बैकुंठ परम पद पायै॥

लंका विध्वंश किये रघुराई। तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई॥
आरती किजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

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