लाख मेहनत करने के बाद भी जब सफलता नहीं मिलता है तो लोग कहते हैं कि किस्मत ( kismat ) पर ताला लगा हुआ है। अगर आपको भी ऐसा ही लग रहा है तो आप इस ताले को खोलने के लिए कानपुर ( Kanpur ) के बंगाली मोहाल मोहल्ले में स्थित काली माता के मंदिर ( Kali Mata mandir ) में चले आइए। क्योंकि इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यहां ताला-चाबी ( lock ) चढ़ाने से किस्मत का ताला खुल जाता है। यहां आने वाले भक्त मातारानी के चरणों में ताला-चाबी चढ़ाते हैं। मातारानी की कृपा से उनकी मुराद पूरी हो जाती है तो वो अगले साल आकर ताला खोल लेते हैं। बताया जाता है कि यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।
मन्नत पूरी होने पर खोल ले जाते हैं ताले
300 वर्ष पुराने इस मां काली के मंदिर में नवरात्र के अवसर पर प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्त मां के दर्शनों के लिए आते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त सच्ची श्रद्धा से मां के मंदिर में ताला बंद कर मनोकामना मांगता है वह अवश्य पूर्ण होती है। आमतौर पर यहां लोहे के ताले लगाए जाते हैं, लेकिन कुछ भक्त मां के चरणों में सोने, चांदी और अन्य धातुओं से निर्मित ताले लगाते हैं। मंदिर में ताला लगाने से पूर्व ताले का पूर्ण विधि विधान से पूजन करना पड़ता है।
मां काली का नाम ऐसे पड़ा 'ताले वाली देवी'
मान्यता है कि सदियों पहले एक महिला भक्त बहुत परेशान थी। वह हर दिन मां काली के मंदिर में दर्शन करने के लिए आती थी। कुछ दिनों बाद वह महिला मंदिर के प्रांगण में ताला लगाने लगी तो पुरोहित ने इस बारे में उससे सवाल किया। महिला ने जवाब दिया कि उसके सपनों में मां काली आई थीं और उसे ऐसा करने के लिए कहा था। मां ने यह भी कहा था कि ऐसा करने से इच्छा जरूर पूरी हो जाएगी। वहीं, कुछ दिनों बाद स्वतः मंदिर की दीवार पर लिखा पाया गया कि तुम्हारी मनोकामना पूरी हो गई है। इसके बाद से ही वह महिला भी कभी नहीं दिखी और उसके द्वारा लगाया हुआ ताला भी गायब हो गया। तब ही से यह परंपरा चली आ रही है।
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