यहां घी के शिवलिंग भक्तों की हर मुराद करते हैं पूरी, सावन में लगती है भक्तों की भीड़

भोलेनाथ के देशभर में कई मंदिर हैं और सभी शिव मंदिरों में लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इन्ही प्रसिद्ध मंदिरों में से एक केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है। त्रिशूर में स्थित यह मंदिर करीब 1000 साल पुराना मंदिर है। यह मंदिर वडकुनाथन मंदिर नाम से प्रसिद्ध है, जोकी प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। वडकुनाथन मंदिर ( vadakkunnathan mandir ) में 16 फीट ऊंचा घी का टीला ही दिखाई देता है, यहां शिवलिंग नज़र ही नहीं आता। कहा जाता है यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग दिखाई नहीं देता। सिर्फ घी का टीला ही नज़र आता है। शिवलिंग ( shivling ) का प्रतिदिन घी से अभिषेक किया जाता है। मंदिर में सावन ( sawan ) के दिनों में सामान्य दिनों से ज्यादा भक्तों की भीड़ नजर आती है। यहां भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं।

ghee ke shivling

शिवलिंग की जगह नजर आता है घी का टीला

धार्मिक परंपरा के अनुसार ( ghee ke shivling )शिवलिंग का घी से अभिषेक किया जाता है। घी की एक मोटी परत हमेशा इस शिवलिंग को ढंकी रहती है, जिसके कारण शिवलिंग नज़र नहीं आता। माना जाता है की यह बर्फ से ढंके कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है। यही नहीं ऐसा माना जाता है कि, यहां चढ़ाने वाले वाले घी में कोई गंध नहीं होती और ना ही यह घी गर्मियों के दौरान पिघलता है।

 

ghee ke shivling

प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ वडकुनाथन मंदिर

वडकुनाथन मंदिर उत्कृष्ट कला और वास्तु कला के लिए प्रसिद्ध है, जो केरल की प्राचीन शैली को दर्शाता है। मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान परशुराम द्वारा की गई थी। यह प्राचीन मंदिर पुरानी परंपराओं और वास्तु शास्त्र की संरक्षण तकनीकों के ज्ञान को खुद में समेटे हुए है। स्थानिय लोगों के मुताबिक कहा जाता है की यहां आदि शंकराचार्य के माता-पिता नें संतान प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया था।

यह प्राचीन मंदिर विशाल पत्थर की दीवारों से घिरा है। मंदिर परिसर के अंदर चार गोपूरम चार मुख्य दिशाओं में मौजूद हैं। दक्षिण और उत्तर दिशा के गोपूरम प्रतिबंधित है वहीं पूर्व और पश्चिम दिशा वाले गोपूरम से मंदिर में प्रवेश मिलता है। मंदिर आध्यात्मिक शांति का उदाहरण माना जाता है।

हाथियों को खिलाया जाता है खाना

मंदिर में हर साल आनापुरम महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें हाथियों को खाना खिलाया जाता है। इस महोत्सव की शुरुआत में सबसे छोटे हाथी को भोजन देकर हाथियों का भोज शुरू किया जाता है।



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