सावन में सभी शिवालयों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। सभी शिव मंदिरों की अपनी अलग विशेषताएं होती हैं, जिनके कारण वे मंदिर अनोखी छटा को लेकर प्रसिद्ध हैं। इन्हीं शिव मंदिरों में से एक शिव मंदिर केरल में स्थित है, जहां शिव भक्तों की लाइन लगी रहती है। वहां के चमत्कारों को देखने के लिए व शिवलिंग ( shivling ) के दर्शन करने के लिए। क्योंकि यहां के शिवलिंग पर दूध चढ़ाने पर दूध रंग नीला हो जाता है। यही नहीं मंदिर में लोग ग्रह शांति ( grah shanti ) की पूजा करवाने के लिए भी दूर-दूर से आते हैं। ग्रहों में केतु की पूजा ( ketu puja) के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध माना जाता है, यहां आसपास ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने से लोग पूजा करवाने आते हैं।
यहां स्थित है यह अद्भुत मंदिर
हम जिस अद्भुत शिवलिंग की बात कर रहे हैं, वह शिवलिंग केरल के कीजापेरुमपल्लम गांव में कावेरी नदी के तट पर स्थित है जिसे नागनाथस्वामी मंदिर ( nagnath swamy mandir ) या केति स्थल के नाम से जाना जाता है। यहां मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, इसके साथ ही केतु ग्रह की शांति और कुंडली में कालसर्प दोष होने पर भी इस मंदिर में विशेष पूजा की जाती है। लेकिन मंदिर में मुख्य देवता के रूप में भगवान शिव की ही पूजा की जाती है। केतु की पूजा के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर अद्भुत माना जाता है। यहां राहु-केतु शांति ( rahu-ketu ) के साथ ही कालसर्प दोष के लिए भी पूजा की जाती है।
राहु की मूर्ति पर दिखाई देता है सांप
मंदिर में, राहु की मूर्ति पर सांप भी दिखाई देते हैं। उन्हें नागों का स्वामी माना जाता है। केतु को सांपों का देवता भी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यहां दूध चढ़ाने पर दूध का रंग बदल जाता है, लेकिन ऐसा सभी के साथ नहीं होता। जिन लोगों पर राहु-केतु का दोष होता है,सिर्फ उन्ही के साथ ऐसा होता है। यहां पर आकर पूजा करने से केतु के समान कुंडली में मौजूद दोष समाप्त हो जाते हैं। सावन माह में यहां पर दर्शन करने वालों की संख्या देखते बनती है। दूध का रंग नीला हो जाने को लोग भगवान शिव का चमत्कार मानते हैं। लोगों की आस्था है कि दूध का रंग नीला करके भगवान शिव यह आश्वासन देते हैं कि कुंडली में दोष है और जो दोष था वह दूर हो गया है।
मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार
बताया जाता है कि, एक बार राहु को एक ऋषि ने नष्ट हो जाने का शाप दिया था और शाप से राहत पाने के लिए राहु अपने सभी गणों के साथ भगवान शिव की शरण में पहुंचे। सभी ने शिवजी की घोर तपस्या की। शिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान शिव राहु के सम्मुख प्रकट हुए और उन्हें ऋषि के शाप से मुक्ति का आशीर्वाद दिया। इसलिए इस मंदिर में राहु को उनके गणों के साथ दर्शाया गया है। उन्हें नागों का स्वामी माना जाता है। राहु का स्वरूप केवल मनुष्य जैसा सिर है। जबकि धड़ को केतु माना जाता है।
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