यहां एक वादे को पूरा करने के लिए 100 साल से मुहर्रम मना रहे हिन्दू

मुहर्रम इमाम हुसैन की शहादत की याद के तौर पर मुस्लिम समुदाय के लोग मनाते हैं। इस दिन मुस्लिम ( शिया ) समुदाय के लोग खुद को यातनाएं देकर उनके प्रति अपना दुख प्रकट करते हैं, फातिहा पढ़ते हैं और ताजिये का जुलूस निकालते हैं।

वैसे तो मुहर्रम मुस्लिम समुदाय के लोग ही मनाते हैं। लेकिन हिन्दुस्तान में एक ऐसा भी गांव है जहां हिन्दू समुदाय के लोग इसे मनाते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार के लोग नहीं रहते हैं। हिन्दू समुदाय के लोग मुस्लिमों की तरह ही मनाते हैं।

यह गांव बिहार के कटिहार जिले के हसनगंज में हैं। इस गांव का नाम महमदिया हरिपुर है। इस गांव की अबादी लगभग 1200 है। सबसे बड़ी बात ये हैं कि यहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता है। मुहर्रम मनाने की परंपरा पिछले 100 साल से चली आ रही है।

मुहर्रम के मौके पर हिंदू समुदाय के लोग चादरपोशी करते हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में हिंदू महिलाएं भी शामिल होती हैं और इमाम हुसैन के नारे लगाते हैं। इसके साथ ही फातिहा भी पढ़ा जाता है। इसके अलावा पूरे गांव में ताजिये का जुलूस भी निकाला जाता है।

ग्रामीणों के अनुसार, महमदिया हरिपुर में पहले वकील मियां नाम के एक शख्‍स रहते थे। ग्रामीण बताते हैं कि वकील मियां अपने बेटे की मौत से दुखी होकर वे गांव छोड़कर चले गए थे। जाने से पहले उन्होंने छेदी साह नामक व्यक्ति को गांव में मुहर्रम मनाने को कहा था।

ग्रामीण बताते हैं कि छेदी साह की मौत के बाद यहां पर उनका मजार बनाया गया और उसी मजार पर चादरपोशी किया जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि जो परंपरा छेदी साह ने शुरू किया था वह परंपरा आज भी जारी है। गांव के लोग बताते हैं कि वकील मियां से जो वादा उनके पूर्वज किये थे, उस वादे को पूरा करने के लिए आज भी मुहर्रम मनाया जाता है।



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