कुछ लोगों को आएं दिन ये कहते देखा जा सकता है कि उन्हें कोई अदृश्य शक्ति कुछ संकेत देना चाहती है या उनसे कोई अपेक्षा कर रही हो। उनको लगता है वह छाया रूप में अदृश्य शक्ति शायद उनके पितरों की होगी और सामान्य स्तर के लोग पितरों की छाया को देखते ही डरने लगते हैं। कुछ शास्त्रों के अनुसार, अगर किसी पितृ की आत्मा जब किसी से संपर्क करने की कोशिश करती है तो उनका उद्देश्य डराना नहीं होता। शायद वे कुछ कहना चाह रही हो, कुछ देना चाह रही आदि उनका उद्देश्य हो सकता है। इसलिए कहा जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म जरूर करना चाहिए।
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पितृ अपने अनुदान सतत् बरसाते हैं
यदि हम अपने आश्रित व्यक्तियों की सेवा सुश्रूषा करके उन्हें मृत्यु पर्यन्त प्रसन्नचित्त रखे तो वे पितर योनि में पहुंच कर भी हमारे लिए अपने अन्त करण में स्नेहसिक्त भावनाएं संजोए रहते हैं। प्रेम और ममत्व की यही भावना हमारे दुख-सुख में साथी सहयोगी बन जाती है। प्रतिकूल या अनुकूल परिस्थितियों में हम अपने पूर्वजों को श्रद्धासिक्त होकर स्मरण करे तो वे हमारे साथ निश्चित रूप से सुक्ष्म रूप से उपस्थित रह कर सत्प्रेरणा का स्रोत सिद्ध होते हैं, अपने अनुदान सतत् बरसाते हैं।
पित्रों की आत्माएं उच्चस्तरीय व्यक्तियों से ही संपर्क करती है
दैवी सहायता में उच्चकोटि के देवताओं की अनुकम्पा तो सम्मिलित है ही साथ ही दिवंगत पितरों के अनुदान भी आते हैं जो कि अपने स्वभाववश किन्हीं की उपयोगी सहायता करना चाहते हैं। पित्रों की दिवंगत आत्माएं केवल उच्चस्तरीय व्यक्तियों से ही संपर्क करने की कोशिश करती है। घिनौने और कुकर्मियों का साथ न तो पितर देते हैं और न देवता, दुर्गन्धित स्थान से हर कोई बच निकलना चाहता है। उसी प्रकार दिव्य शक्तियां भी कुकर्मियों के आह्वान अनुरोध को स्वीकार नहीं करती, जब कि सत्पात्रों को वे स्वयं ही तलाश करती रहती है और अच्छे साथी के साथ सहयोग का आदान प्रदान करते हुए वे अपने सहयोग की सार्थकता अनुभव करते हुए प्रसन्न भी होती है। सत्पात्रों को वे सद्प्रेरणाएं एवं मातृपितृवत् स्नेह प्रदान करती है ऐसी अदृश्य सहायता के बलबूते अपनी निजी सामर्थ्य की तुलना में उन्हें कहीं अधिक कार्य कर गुजरते देखा जाता है।
पितरों का गृह
विश्व में ऐसे अनेकों उदाहरण विद्यमान है जिसमें लोगों पर पितर आत्माओं का स्नेह बरसा, उनकी सहायता मिली। इतना ही नहीं वे संबंधित व्यक्ति के पास प्रमाण स्वरूप अपना स्मृति चिन्ह भी छोड़ गये। रोम में विश्व का एक ऐसा ही अद्भुत एवं आश्चर्यजनक संग्रहालय है जिसमें पितर चिन्हित वस्तुओं के अनेकानेक प्रमाण संग्रहित है। इस संग्रहालय को “हाउस ऑफ शैडोज” के नाम से जाना जाता है। इसे “पितरों का गृह” भी कहते हैं। इसमें तरह तरह के छाया चित्र, तैल चित्र वस्त्र आभूषण, तख्त तथा मूर्तियां आदि रखी हुई है, जिन्हें मरने के बाद वापस आई हुई सूक्ष्म शरीर धारी आत्माओं की निशानी कहा जाता है।
पितरों की आत्माएं प्रेरणास्पद संकेत देती है
अवांछनियताओं के निवारण और अनीति के निराकरण की सत्प्रेरणा पैदा करने तथा उस दिशा में आगे बढ़ने वालों की मदद करने का काम भी ये सदाशयी पितरात्माएं करती है। उदात्त आत्माएं पितर के रूप में संताने की सहायता के लिए सदैव प्रस्तुत रहती है। इसकी आत्मीयता की परिधि अति विस्तृत होती है, और पथभ्रष्ट लोगों को कल्याण पथ में नियोजित कर देना ही अपना कर्तव्य मानती है। धर्म पुरोहितों का कहना है कि पित्रों की आत्माओं से भयभीत होने की कोई बात नहीं है, ये पितरों की ही दिवंगत आत्माएं है जो अपनी संतानों को कल्याणकारी मार्ग पर चलने क लिए प्रेरणास्पद संकेत देती है।
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