शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुका है। कहा जाता है शारदीय नवरात्रि के दौरान माता पार्वती हिमालय से मायके आती हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के दौरान माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे कि माता पार्वती की शादी भगवान से शिव से कहां हुई थी।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती की शादी सतयुग में हुई थी। कहा जाता है कि सावन महीने में शिव-पार्वती शादी के बंधन में बंधे थे। ससुराल जाने के बाद माता पार्वती पहली बार शारदीय नवरात्रि में ही मायके आईं थी। मान्यता है कि हर साल शारदीय नवरात्र में माता पार्वती मायके आती हैं।
कहां हुई थी शादी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिव-पार्वती की शादी 'त्रियुगी नारायण' मंदिर में हुई थी। यह पवित्र स्थान रुद्रप्रयाग में है। माना जाता है कि जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था, तब यह 'हिमवत' की राजधानी थी। यहां हर साल सितंबर महीने में बावन एकादशी के दिन मेले का आयोजन किया जाता है।
आज भी प्रज्वलित है विवाह मंडप की अग्नि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती ने 'त्रियुगी नारायण' मंदिर से आगे गौरी कुंड के पास तपस्या की थी। कहा जाता है कि माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने 'त्रियुगी नारायण' मंदिर में विवाह किया था। बताया जाता है कि उस हवन कुंड में आज भी वही अग्नि जल रही है, जिसे साक्षी मानकर शिव-पार्वती ने विवाह किया था।
'त्रियुगी' नाम कैसे पड़ा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान किया था। इसलिए यहां तीन कुंड बने। इन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इन कुंडों में जल सरस्वती कुंड से आता है। कहा जाता है कि यहां पर तीन युगों से अग्नि प्रज्वलित हो रही है इसलिए इस मंदिर का नाम 'त्रियुगी नारायण' मंदिर पड़ा।
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