हिंदू धर्म में पितृपक्ष का बहुत अधिक महत्व माना जाता है और सभी लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करते हैं। घरों में भी धूप-ध्यान द्वारा पूर्वजों व पितरों को ऊर्जा प्रदान करते हैं। कई लोग पितरों की शांति व श्राद्ध के लिए गया भी जाते हैं, क्योंकि माना जाता है कि श्राद्ध के लिए गया सबसे महत्वरूर्ण स्थान माना जाता है। इन दिनों सभी पितृ धरती पर किसी ना किसी रुप में आते हैं। इस दौरान अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का बहुत अच्छा समय होता है। विधि-पूर्वक श्राद्ध करने से पितृ आशीर्वाद देते हैं। तो आइए जानते हैं श्राद्ध की विधि, मंत्र और सही समय...
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ऐसे करें श्राद्ध ( Shradh vidhi in hindi )
श्राद्ध वाले दिन अहले सुबह उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद पितृ स्थान को सबसे पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद पंडित जी को बुलाकर पूजा और तर्पण करें। इसके बाद पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें और उसमें से एक हिस्सा गाय, एक कुत्ते, एक कौए और एक अतिथि के लिए रख दें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन कराने के बाद ब्राह्मण वस्त्र और दक्षिणा दें।
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तर्पण मंत्र ( Tarpan mantra )
1. तर्पण पिता को इस मंत्र से अर्पित करें जल-
तर्पण पिता को जल देने के लिए आप अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इसके बाद गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें।
2. तर्पण दादाजी को इस मंत्र के साथ दें जल-
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (दादाजी का नाम) लेकर बोलें, वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।
3. तर्पण माता को इस मंत्र से अर्पित करें जल-
माता को जल देने के नियम, मंत्र दोनों अलग होते हैं। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार मां का ऋण सबसे बड़ा माना गया है।
माता को जल देने के लिए अपने (गोत्र का नाम लें) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
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