दशहरे के दिन यहां के लोग मनाते हैं मातम, घर में नहीं जलते चूल्हे

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शारदीय नवरात्रि के नवमी तिथि के अगले दिन दशहरा मनाया जाता है। इस दिन लोग रावण का प्रतिकात्मक दहन करते हैं। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का पर विजय प्राप्त की थी। इस मौके पर हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहा हैं, जहां दशहरे के दिन मातम मनाया जाता है।

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यही नहीं, इस दिन घरों में चूल्हे तक नहीं जलते हैं। यह परंपरा इस गांव में वर्षों से चली आ रही है। यह गांव है उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में। इस गांव का नाम बिसरख ( ग्रेटर नोएडा वेस्ट ) है

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रावण के पिता के नाम पर पड़ा इस गांव का नाम बिसरख

लोग बताते हैं कि इस गांव का नाम बिसरख रावण के पिता के नाम पर रखा गया है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रावण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था। ऋषि विश्रवा के नाम पर इस गांव का नाम बिसरख रख दिया गया।

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खुद को रावण के वंशज मानते हैं यहां के लोग

बिसरख में रहने वाले लोग खुद को रावण के वंशज मानते हैं। यहां के लोग रावण परिवार की पूजा करते हैं। ग्रामीण भगवान की तरह रावण की भी पूजा करते हैं। लोग बताते हैं कि हर शुभ काम की शुरुआत रावण की पूजा आराधना के बाद ही शुरू की जाती है। इस गांव में न तो कभी रामलीला का मंचन होता है ना ही यहां के लोग विजयादशमी मनाते हैं।

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रावण का जन्म बिसरख में ही हुआ था

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में बिसरख गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था। बताया जाता है ऋषि विश्रवा ने इस गांव में शिवलिंग की स्थापना की थी। ऋषि विश्रवा के घर रावण का जन्म हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने भगवान शिव की तपस्या इसी गांव में की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को पराक्रमी होने का वरदान दिया था।

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यहां पर है अष्टभुजा वाला शिवलिंग

स्थानीय लोगों के अनुसार, वर्षों पहले यहां पर एक तांत्रिक ने खुदाई करवाई थी, खुदाई में यहां अष्टभुजा वाला शिवलिंग निकला। इस शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका छोर अब तक नहीं मिला। लोग बताते हैं यह वही शिवलिंग है, जिसकी स्थापान ऋषि विश्रवा ने की थी। यहां पर एक रावण मंदिर भी है, जिसकी पूजा करने के बाद ही लोग शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं।



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