कालिदास जयंती 2019ः महामूर्ख से महाकवि की महायात्रा

महाकवि कालिदास जी का जन्म कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुआ था। उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था। कालिदास शक्लो-सूरत से सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे। लेकिन अयोग्य होने के कारण पत्नी द्वारा अपमानिक किए जाने और घर से निकाले जाने पर उन्होंने अपनी योग्यता का विस्तार किया और एक दिन देश के महान महाकवि कालिदास बन गए। कालिदास के महाकाव्य में रघुवंश के राजाओं की गाथाओं का वर्णन, शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की का भी वर्णन मिलता है। इस साल कालीदास जी की जयंती 9 नवंबर 2019 दिन शनिवार को है।

राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार माने जाते हैं। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं।

 

तुलसी विवाह 8 नवंबर : पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त

कुछ धार्मिक ग्रंथों में कथा आती है कि कालिदास एक गया बीता व्यक्ति था, बुद्धि की दृष्टि से शून्य एवं काला कुरूप। एक बार जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था। जंगल में उसे इस प्रकार बैठे देख राज्य सभा से विद्योत्तमा अपमानित पण्डितों ने उस विदुषी को शास्त्रार्थ में हराने व उसी से विवाह कराने का षड्यन्त्र रचने के लिए कालिदास को श्रेष्ठ पात्र माना। शास्त्रार्थ में अपनी कुटिलता से उसे मौन विद्वान् बताकर उन्होंने प्रत्येक प्रश्न का समाधान इस तरह किया कि विद्योत्तमा ने उस महामूर्ख से हार मान उसे अपना पति स्वीकार कर लिया।

अपनी ज्ञान वृद्धि

विवाह के पहले ही दिन जब उसे वास्तविकता का पता चला जो उसने उसे घर से निकाल दिया। धक्का देते समय जो वाक्य उसने उसकी भर्त्सना करते हुए कहे- वे उसे चुभ गये। दृढ़ संकल्प- अर्जित कर वह अपनी ज्ञान वृद्धि में लग गया। अन्त में वही महामूर्ख अपने अध्ययन से कालान्तर में महाकवि कालिदास के रूप में प्रकट हुआ और अपनी विद्वता की साधना पूरी कर विद्योत्तमा से उसका पुनर्मिलन हुआ।

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