चारों ओर घना जंगल और पहाड़ों के बीच 32 मोटे खंभों पर टिका एक मंदिर, जिसके आसपास हमेशा नक्सलियों का भी भय बना रहता है, लेकिन मान्यता ऐसी की इन तमाम परेशानियों के बावजूद भक्त यहां देवी मां के दर्शन करने दौड़े चले आते हैं।
ये एक ऐसा शक्ति पीठ है जहां के बारे में ये माना जाता है कि यहां स्वयं माता सती का दंत गिरा था, इसी के चलते इस मंदिर का नाम पड़ गया दंतेश्वरी माता...
शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित करीब 140 साल पुराने इस मंदिर में आज भी सिले हुए वस्त्रों को पहनकर जाने की मनाही है। जिसके चलते यहां पुरुषों को धोती या लुंगी लगाकर ही प्रवेश करने दिया जाता है।
MUST READ : देवी मां के अवतारों का ये है कारण, नहीं तो खत्म हो जाता संसार
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित दंतेश्वरी माता के इस मंदिर के बनने की कहानी बहुत रोचक है। कहते हैं इस मंदिर का निर्माण महाराजा अन्नमदेव ने चौदहवीं शताब्दी में किया था। वारंगल राज्य के प्रतापी राजा अन्नमदेव ने यहां आराध्य देवी मां दंतेश्वरी और मां भुवनेश्वरी देवी की स्थापना की।
वहीं एक दंतकथा के मुताबिक अन्नमदेव जब मुगलों से पराजित होकर जंगल में भटक रहे थे तो कुलदेवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघ पूर्णिमा के मौके पर वे घोड़े पर सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें। वे जहां तक जाएंगे, वहां तक उनका राज्य होगा और स्वयं देवी उनके पीछे चलेंगी। लेकिन पीछे मुड़कर मत देखना।
MUST READ : माता सती की नाभि यहां गिरी थी! तब कहीं जाकर काली नदी के तट पर बना ये शक्तिपीठ
वरदान के अनुसार राजा ने वारंगल के गोदावरी के तट से उत्तर की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ की। राजा अपने पीछे चली आ रही माता का अनुमान उनके पायल की घुंघरुओं से कर रहे थे। शंखिनी और डंकिनी की त्रिवेणी पर नदी की रेत में देवी के पैरों की घुंघरुओं की आवाज रेत में दब जाने के कारण बंद हो गई तो राजा ने पीछे मुड़कर देख लिया।
राजा का ऐसा करना था कि देवी वहीं ठहर गईं। कुछ समय पश्चात मां दंतेश्वरी ने राजा के स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मैं शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर स्थापित हूं।
MUST READ : ऐसा दरवाजा जिसके पार है स्वर्ग, सीधे सशरीर जाने की है मान्यता
कहा जाता है कि मां दंतेश्वरी की प्रतिमा प्राकट्य मूर्ति है और गर्भगृह विश्वकर्मा द्वारा निर्मित है। शेष मंदिर का निर्माण कालांतर में राजा ने किया।
कैसे पहुंचे यहां:
मां दंतेश्वरी तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का साधन सुगम है। रायपुर से बस से जगदलपुर पहुंचकर दंतेवाड़ा पहुंचा जा सकता है। मंदिर प्रसिद्ध होने के कारण साधनों की कमी नहीं पड़ती।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3dmLVYq
EmoticonEmoticon