होलाष्टक इस साल 3 मार्च से 9 मार्च तक रहेगा। अपशगुन होने के कारण इस दौरान मांगलिक कार्यों को करना वर्जित होता है। ऐसे में मन से सवाल उठता है कि आखिर इस दौरान शुभ कार्य क्यों नहीं होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसका संबंध विष्णु भक्त प्रह्लाद और कामदेव से जुड़ी हुई है। आइये जानते हैं कि भक्त प्रह्लाद और कामदेव के साथ ऐसा क्या हुआ था कि होलाष्टक अशुभ माने जाने लगा।
भक्त प्रह्लाद को दी गई थी यातनाएं
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए कई प्रकार की यातनाएं दी थी। माना जाता है कि फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक कई प्रकार की यातनाएं दी थी। इस दौरान उन्हें मारने का भी प्रयास किया गया था। हर बार भगवान विष्णु उन्हे बचा लेते थे।
कहा जाता है कि फाल्गुन पूर्णिमा की रात हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद मारने के लिए अपनी बहन होलिका को अपने बेटे के साथ अग्नि बैठाने की योजना बनाई ताकि उसके राज्य में भगवान विष्णु का नाम न ले।
इसके बाद होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। दरअसल, होलिका वरदान में एक अस्त्र मिला था, जिसे पहनकर अगर वह अग्नि में भी बैठ जाए तो उसका बाल भी बांका न हो लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से अग्नि में होलिका जलकर मर गई और प्रह्लाद बच गया। यही कारण है कि होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहते हैं और इस दौरान भी कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
कामदेव को भगवान शिव ने किया भस्म
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को कामदेव को भस्म कर दिया था। कहा जाता है कि कामदेव भगवान शिव की तपस्या को भंग करने का प्रयास किया था, जिससे नाराज होकर भगवान शिव ने उन्हें भस्म कर दिया था। इसके बाद कामदेव की पत्नि रति ने उनके अपराध के लिए भगवान शिव से क्षमा मांगी और कामदेव को पुनर्जीवन देने के लिए तप की। इसके बाद ही कामदेव को पुनर्जीवन मिला।
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