विश्व की सबसे ताकतवर जगह है ये स्थान, कारण आज तक नहीं जान पाए बड़े से बड़े वैज्ञानिक-देखें वीडियो

chaitra Navratri 2020 चैत्र नवरात्रि 2020 इस साल 25 मार्च से शुरू होने वाली हैं। ऐसे में माता के भक्त पूरे 9 दिनों तक माता की पूजा-अर्चना करके मां को प्रसन्न करना चाहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिन नवदुर्गा navdurga की हम इन नौ दिनों में पूजा करते हैं।

उन्हीं में से एक मां दुर्गा navdurga के रूप में कात्यायनी देवी के यहां प्रकट होने का प्रमाण स्कंद पुराण skand puran में मौजूद है। वहीं जिस जगह उनके धरती में प्रकट होने की बात सामने आती है, वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर मौजूद होने के साथ ही विश्व की सबसे ज्यादा ताकत होने का प्रमाण खुद नासा तक दे चुका है।

दरअसल आज हम आपको नवरात्रि navratri से ठीक पहले एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इस नवरात्रि से सीधा नाता है। दरअसल यहां वह पहाड़ आज भी मौजूद है जहां स्वयं ma katyayni मां कात्यायनी प्रकट हुईं और उन्होंने शुंभ निशुंभ नामक दानवों का वध किया। इतना ही नहीं यहां उनके साथ उनकी सवारी शेर के प्रकट होने के भी सबूत मिलते हैं।

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ऐसे समझें : शक्ति से नासा के वैज्ञानिक भी हैरान...
दरअसल रहस्यों से भरे प्रदेश उत्तराखंड को Dev Bhoomi Uttrakhand देव भूमि भी कहा जाता है और इस देव भूमि से कई दिव्य रहस्य भी जुड़े हुए हैं, जिनका आज तक कोई पता नहीं लगा सका। ऐसा ही एक रहस्य उत्तराखंड में मौजूद एक मंदिर भी है, जिसने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नींद उड़ा रखी है।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कसारदेवी kasar Devi मंदिर की ‘असीम’ शक्ति से नासा nasa के वैज्ञानिक भी 2012 में हैरान रह गए। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस जगह के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर चुके हैं, लेकिन आज तक इसका कारण पूरी तरह से उनकी भी समझ के परे बना हुआ है।

पहले जहां वैज्ञानिक इस पूरे पहाड़ को ही चुंबकीय मानते थे, वहीं लोगों के अनुसार जब उन्होंने यहां जांच की तो वे भी इस बात को देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि सबसे मुख्य चुंबकीय किरणें यहां kasar devi मंदिर से ही फैलती हैं।

पर्यावरणविद् डॉक्टर अजय रावत ने भी लंबे समय तक इस पर शोध किया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है।

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इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं,परंतु आजतक कोई भी इस भू-चुंबकीय पिंड का पता नहीं लगा सका।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित navratri कसारदेवी मंदिर की अपार शक्ति से बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी हैरान हैं। दुनिया में केवल तीन ही पर्यटन स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शनों के साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति के केंद्र भी हैं।

वहीं nasa नासा के वैज्ञानिकों ने अध्ययन में यह भी पता लगाया कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। तब 2012 के इस अध्ययन में पाया गया था कि अल्मोड़ा स्थित कसार kasar devi देवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं। इन तीनों जगहों पर चुंबकीय शक्ति का विशेष पुंज है। डॉ. रावत ने भी अपने शोध में इन तीनों स्थलों को चुंबकीय रूप से चार्ज पाया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास भी इस तरह की शक्ति निहित है।

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अद्भुत और रहस्यमयी होने के साथ ही प्रमाण भी हैं मौजूद..
अल्मोड़ा शहर से तकरीबन दस किलोमीटर दूर माता के इस मंदिर का खास महत्व है। कहा जाता है कि हजारों साल पहले शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध करने के लिये मां दुर्गा maa Durga कात्यायनी रूप में खुद इस स्थान पर प्रकट हुई थीं। मंदिर के पुजारी हेम चंद जोशी के अनुसार मंदिर के भीतर पहाड़ का वो हिस्सा आज भी सिंह रूप में मौजूद है।

कसार देवी मंदिर और उसके आस-पास के क्षेत्र के विशेष navratra चुम्बकीय शक्तियों की वजह से ध्यान और तप के लिये विशेष तवज्जो दी जाती है। खास बात ये है कि स्वामी swami Vivekananda विवेकानंद भी इस जगह पर ध्यान में लीन हो गये थे।

कसार देवी kasar Devi मंदिर के आस-पास का पूरा क्षेत्र हिमालयी वन और अद्भुत नजारे से घिरा हुआ है। बड़ी संख्या में देशी पर्यटकों के अलावा विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं। बिनसर navdurga और आस-पास के लोगों अलावा तमाम विदेशी पर्यटक भी रोजाना भ्रमण करते दिखाई पड़ते हैं। कुछ लोग बताते हैं कि बड़ी संख्या में विदेशी साधकों ने अस्थाई ठिकाना भी यहां बना लिया है।

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जाहिर है सुंदर हिमालयी नजारे के साथ अद्भुत navdurga शक्तियों से सराबोर इस स्थान को धार्मिक पर्यटन और ध्यान केन्द्र के रूप में और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है लेकिन आस-पास सुविधाओं का अभाव है। सरकार यदि ध्यान दे तो ये स्थान न सिर्फ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है बल्कि ध्यान केन्द्र के रूप में भी पूरी दुनिया में अपना अलग मुकाम बना सकता है।

सबसे पहले यहीं आए थे स्वामी विवेकानंद...
कहा जाता है कि swami Vivekananda स्वामी विवेकानंद उत्तरांचल में सबसे पहले यहीं आए थे। यहां कुछ महीनों के ध्यान के बाद उन्होंने कहा था कि ये पूरा क्षेत्र ही बहुत खास है साथ ही उन्होंने ये तक कहा था कि यहां प्रकृति की खास देन है जो पहाड़ के आसपास ही नहीं अल्मोड़ा तक जाती है, यहां के लोग खासे धार्मिक हैं।

बताया जाता है कि अल्मोड़ा से करीब 22 किमी दूर काकड़ीघाट में स्वामी swami Vivekananda विवेकानंद को विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी। इसी तरह बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी। हर साल इंग्लैंड से और अन्य देशों से अब भी शांति प्राप्ति के लिए सैलानी यहां आकर कुछ माह तक ठहरते हैं।

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ये भी कहा था स्वामी विवेकानंद ने...
स्वामी विवेकानंद ने 11 मई 1897 को अल्मोड़ा के खजांची बाजार में जन समूह को संबोधित करते हुए कहा था कि यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का देश है। भारत जननी श्री पार्वती maa parvati की जन्म भूमि है। यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने को इच्छुक रहता है।

यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। मेरे मन में इस समय हिमालय himalaya में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है। संबोधन में आगे कहा कि इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं।

यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि यहीं निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी। उल्लेखनीय है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्य स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइटएंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई, जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है।

ये है खासियत...
: इस देवी का रहस्य किसी के भी पास नहीं है।
: कोसी नदी के पास स्थित है कसाय पर्वत में है ये कसार देवी का मंदिर।
: यहां देवनागरी लिपि में लिखी हुई एक पट्टिका भी मिली है जो इसके अति प्राचीन होने की गवाही देती हैं।
: स्कंद पुराण में ये वर्णन है कि यहां मां दुर्गा ने अवतार लिया था। जिन्हें कुछ भक्त कौशिकी या कात्यायनी भी मानते हैं।
: इसी कसाय पर्वत पर मां दुर्गा ने शुंभ निशुंभ का वध किया था।
: यहां मां दुर्गा अपने कात्यायनी के रूप मे शेर पर सवार होकर प्रकट हुईं थीं।

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सबसे बड़ा रहस्य...
-: मंदिर के अंदर ही मूर्ति के ठीक पीछे की जगह को देवी दुर्गा कात्यायनी के प्रकट होने की जगह माना जाता है और यहीं उन्होंने दो दैत्यों को मारा। वहीं इसी जगह पर एक शेर की आकृति भी महसूस की जा सकती है, जिसके चलते यहां देवी के शेर पर प्रकट होने की बात कही जाती है।
-: मंदिर को छोड़ जहां नासा के वैज्ञानिक पूरे पहाड़ से ही चुंबकीय शक्ति का निकलना मान रहे थे, वहीं जांच के बाद में नासा के वैज्ञानिक भी इस बात से हैरान रह गए कि चुंबकीय शक्ति ठीक कसार देवी के मंदिर से ही निकल रही थी।
-: नासा वैज्ञानिक इस बात से भी अचंभित रहे कि ऐसी चुंबकीय किरणें कसार पर्वत को छोड़ दें, तो पूरे हिमालय में कहीं नहीं हैं।
: माना जाता है कि इस जगह विचारों से नकारात्मकता यानि निगेटिविटी खत्म हो जाती है, साथ ही ये चुंबकीय किरणें सकारात्मकता देती है।
: इस मंदिर के अंदर मोबाइल या टैबलेट जैसे डिवाइस काम नहीं करते, वहीं बाहर की आवाज भी यहां सुनाई नहीं देती।
: खोज के लिए आए नासा के वैज्ञानिकों सहित विज्ञान ने तक यहां के रहस्यों के चलते धर्म के सामने सिर झुका दिया।
: कहा जाता है कि इस जगह का रहस्य हजारों साल पुराना है।
: सबसे खास बात ये कि यहां जो चुंबकीय शक्ति निकलती है वह पॉजीटिव एनर्जी देती है।
: यहां पहाड़ से निकलती हैं रहस्यमयी चुंबकीय किरणें।
: नासा ने भी इसे बेहद रहस्यमयी पहाड़ बताया।
: यहां एक शिलालेख भी मिला, जिसके अनुसार यहां पहले विश्वेश्वर का मंदिर स्थापित किया गया था।



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