मंगलवार ही नहीं शनिवार भी है श्रीहनुमान का दिन, जानिये सिंदूरी चोला का रहस्य

सनतान धर्मियों में श्री हनुमान भगवान शिव का 11वां रुद्रावतार माना जाता है। वहीं हनुमान को चिरंजीवी होने के साथ ही कलयुग का देवता भी माना गया है।

हिन्दुओं में हनुमानजी को संकटमोचन माना जाता है, ऐसे में सप्ताह के मंगलवार व शनिवार के दिन उनका खास महत्व माना जाता है, क्योंकि इन्हें जहां मंगल का कारक देव माना गया है, वहीं शनिवार के दिन इनकी पूजा करने का भी विधान है।

हनुमान जी यानि बजरंगबली का खास आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हिन्दू धर्मावलंबी हनुमान जी को सिंदूरी चोला चढ़ाते हैं, माना जाता है ऐसा करने से हनुमान तुरंत ही प्रसन्न होकर भक्तों के संकट को दूर कर देते हैें।

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पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है, इसके पीछे भी कुछ अत्यंत रोचक मान्यताएं हैं। जो सामान्यत: सभी लोग नहीं जानते हैं। हनुमान जी अष्ट सिद्धि नौ-निधि के दाता होने के साथ ही भक्तों की संकटों से रक्षा भी करते हैं, अत: उन्हें खुश करने के लिए सिंदूरी चोला चढाए जाने क कारण हम आपको यहां यह बता रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि मान्यता है कि एक बार जब हनुमानजी को भूख लगी तो वे भोजन के लिए सीताजी के पास गए। यहां सीताजी की मांग में सिन्दूर लगा देखकर वे चकित हुए और उनसे पूछा- मां, आपने ये क्या लगाया है? तब सीताजी ने उनसे कहा कि यह सिन्दूर है, जो सौभाग्यवती महिलाएं (अर्थात उनके लिए यह श्रीराम जी का प्रतीक है) अपने स्वामी की लंबी उम्र, प्रसन्नता और कुशलता के लिए लगाती हैं।

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इस पर राम भक्त हनुमानजी ने सोचा कि अगर चुटकीभर सिंदूर लगाने से स्वामी(श्रीराम) की प्रसन्नता प्राप्त होती है, तो पूरे शरीर में सिंदूर लगाने से वे सदा प्रसन्न रहेंगे। यह सोचकर हनुमानजी ने पूरे बदन पर सिन्दूर लगा लिया और भगवान श्रीराम की सभा में चले गए। हनुमानजी का यह रूप देखकर सभी सभासद हंसने लगे।

पूरी बात जानने के बाद भगवान श्रीराम भी स्वयं के प्रति हनुमान जी के प्रेम को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमानजी को यह वरदान दिया कि जो भी मनुष्य मंगलवार और शनिवार को उन्हें घी के साथ सिंदूर अर्पित करेगा, उस पर स्वयं श्रीराम भी कृपा करेंगे और उसके बिगड़े काम बन जाएंगे।

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सीता माता के उपहार पर नहीं था श्रीराम का नाम...
एक अन्य मान्यता के अनुसार जब लंका विजय के बाद भगवान राम-सीता अयोध्या आए तो वानर सेना की विदाई की गई थी। जब हनुमानजी को सीताजी विदा कर रही थीं, तो उन्होंने हनुमानजी को अपने गले की माला उतारकर पहनाई थी। बहुमूल्य मोतियों और हीरों से जड़ी ये माला पाकर हनुमानजी प्रसन्न नहीं हुए, क्योंकि उस पर भगवान श्रीराम का नाम नहीं था।

सीताजी ने हनुमानजी से कहा था कि इससे अधिक महत्व की उनके पास कोई वस्तु नहीं है, इसलिए तुम यह सिन्दूर धारण कर अजर-अमर हो जाओ। तब से हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाया जाने लगा। इसी सिंदूर से हनुमानजी आज भी अजर-अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि नरक चौदस के दिन हनुमानजी की पूजा से हर तरह की बाधा दूर हो जाती है।

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अनंत ऊर्जा का प्रतीक है सिन्दूर
वहीं विज्ञान के मुताबिक भी हर रंग में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है। सिन्दूर ऊर्जा का प्रतीक है और जब हनुमानजी को अर्पित करने के बाद भक्त इससे तिलक करते हैं, तो दोनों आंखों के बीच स्थित ऊर्जा केंद्र सक्रिय हो जाता है।

ऐसा करने से मन में अच्छे विचार आते हैं, साथ ही परमात्मा की ऊर्जा प्राप्त होती है। हनुमानजी को घृत (घी) मिश्रित सिन्दूर चढ़ाने से बाधाओं का निवारण होता है। यही वजह है कि मंदिरों में हनुमानजी को सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है।

हनुमान जी की पूजा कब और कैसे करें...
भगवान शिव के एकादश रुद्रावतारों में से एक हनुमानजी भी हैं। इनका जन्म वैशाख पूर्णिमा को हुआ माना जाता है। इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए शिवार्चन के जैसी सरल साधना विधि भी है। वहीं आवश्यकता के अनुसार मंत्र इत्यादि में परिवर्तन किया जाता है।

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पंडित सुनील शर्मा के मुताबिक पूर्णत: सात्विक रहते हुए हनुमानजी का पूजन-भजन करना चाहिए अन्यथा देव कोप भोगना पड़ सकता है। साधारणत: हनुमान प्रतिमा को चोला चढ़ाते हैं। हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने के लिए मंगलवार को और शनि महाराज की साढ़े साती, अढैया, दशा, अंतरदशा में कष्ट कम करने के लिए शनिवार को चोला चढ़ाया जाता है।

साधारणत: तो मान्यता इन्हीं दिनों की है, लेकिन दूसरे दिनों में रवि, सोम, बुध, गुरु, शुक्र को चढ़ाने का निषेध नहीं है। चोले में चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर प्रतिमा पर लेपन कर अच्छी तरह मलकर, रगड़कर चांदी या सोने का वर्क चढ़ाते हैं।

इस प्रक्रिया में कुछ खास बातें समझने की हैं। पहली बात चोला चढ़ाने में ध्यान रखने की है। अछूते (शुद्ध) वस्त्र धारण करें। दूसरी नख से शिख तक (सृष्टि क्रम) और शिख से नख तक (संहार क्रम) होता है। सृष्टि क्रम यानी पैरों से मस्तक तक सिन्दूर चढ़ाने में देवता सौम्य रहते हैं। संहार क्रम से चढ़ाने में देवता उग्र हो जाते हैं।

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यह चीज श्रीयंत्र साधना में सरलता से समझी जा सकती है। यदि कोई विशेष कामना पूर्ति हो तो पहले संहार क्रम से, जब तक कि कामना पूर्ण न हो जाए, पश्चात सृष्टि क्रम से चोला चढ़ाया जा सकता है। ध्यान रहे, पूर्ण कार्य संकल्पित हो। सात्विक जीवन, मानसिक एवं शारीरिक ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

जानकारों का कहना है कि हनुमानजी के विग्रह का पूजन व यंत्र पूजन में काफी असमानताएं हैं। प्रतिमा पूजन में सिर्फ प्रतिमा का पूजन तथा यंत्र पूजन में अंग देवताओं का पूजन होता है। हनुमान चालीसा व बजरंग बाण सर्वसाधारण के लिए सरल उपाय हैं। सुन्दरकांड का पाठ भी अच्छा है।

इसके अलावा हनुमानजी के काफी मंत्र भी उपलब्ध हैं। जिनमें से आवश्यकता के अनुसार चुनकर साधना की जा सकती है। वहीं शाबर मंत्र भी हैं, लेकिन इनका प्रयोग गुरुदेव की देखरेख में करना उचित है।

शास्त्रों में भी लिखा है कि- 'जपात् सिद्धि-जपात् सिद्धि' यानी जपते रहो, जपते रहो, सिद्धि जरूर प्राप्त होगी। कलयुग में साक्षात देव हनुमानजी हैं। हनुमानजी की साधना से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सभी प्राप्त होते हैं।


बजरंगबली कैसे बने पंचमुखी हनुमान
जब राम और रावण की सेना के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था और रावण अपने पराजय के समीप था तब इस समस्या से उबरने के लिए उसने अपने मायावी भाई अहिरावन को याद किया जो मां भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र का का बड़ा ज्ञाता था। उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सारी सेना को निद्रा में डाल दिया तथा राम एव लक्ष्मण का अपहरण कर उनकी देने उन्हें पाताल लोक ले गया।

कुछ घंटे बाद जब माया का प्रभाव कम हुआ तब विभिषण ने यह पहचान लिया कि यह कार्य अहिरावन का है और उसने हनुमानजी को श्री राम और लक्ष्मण सहायता करने के लिए पाताल लोक जाने को कहा। पाताल लोक के द्वार पर हनुमानजी को उनका पुत्र मकरध्वज मिला और युद्ध में उसे हराने के बाद हनुमान जी बंधक बने श्री राम और लक्ष्मण से मिले।

वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो सकता था, इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप रखा।

इसमें उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख और पूर्व दिशा में हनुमान मुख था। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप एक साथ बुझाए व अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को मुक्त कराया।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार एक बार मरियल नाम का दानव भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र चुरा ले गया और यह बात जब हनुमान को पता चली तो यह संकल्प लिया कि वे चक्र पुन: प्राप्त कर भगवान विष्णु को सौप देंगे।

मरियल दानव इच्छानुसार रूप बदलने में माहिर था, अत: विष्णु भगवान ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिंह-मुख, हयग्रीव मुख ज्ञान प्राप्त करने के लिए व वराह मुख सुख व समृद्धि के लिए था। पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प औरं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया। आशीर्वाद व इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मरियल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई।

धन-रोजगार-ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए हनुमान मंत्र
नौकरी, व्यवसाय, कॅरियर, प्यार, सेहत और प्रगति के लिए हनुमान जी के मंत्रों का प्रयोग किसी भी शुभ मुहूर्त में मंगलवार या शनिवार को किया जा सकता है।

रोजगार-ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए हनुमत् गायत्री मंत्र की यथाशक्ति 11-21-51 माला करें। देशकाल के अनुसार हवन करें। मंत्र सिद्ध हो जाएगा। पश्चात नित्य 1 माला जपें।

हनुमान जी के ये हैं कुछ खास मंत्र...

(1) ऊँ ह्रीं आंजेनाय विद्महे, पवनपुत्राय
धीमहि तन्नो: हनुमान प्रचोद्यात्।।

(2) ऊँ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।

(3) ऊँ नमो भगवते हनुमते महारुद्राय हुं फट स्वाहा

(4) ऊँ हं पवन नंदनाय स्वाहा

(5) ऊँ नमो हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा।

(6) ऊँ नम: शिवाय ऊँ हं हनुमते श्री रामचन्द्राय नम:।



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