इस प्रदोष से शांत होता है मंगल दोष और दूर होती हैं स्वास्थ्य सबंधी समस्याएं, जानें कब और कैसे करें

हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत एक साल में कई बार आता है। प्रायः यह व्रत महीने में दो बार आता है।

वहीं क्या आप जानते हैं एक ऐसा प्रदोष व्रत भी है जिसके संबंध में मान्यता है कि इसे करने से मंगल दोष तक शांत हो जाता है। इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा कहते हैं कि ज्योतिष के अनुसार कुंडली में मंगल दोष विवाह सहित कई तरह की परेशानियों को जन्म देता है।

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ऐसे में लोग इसके निराकरण के लिए कई उपाय करते हैं। वहीं कई बार तो इस दोष के चलते या तो लोगों की शादी में विलंब हो जाता है या कई बार तो ताउम्र विवाह ही नहीं हो पाता। ऐसे में आज हम आपको ऐसा उपाय बता रहे है, जिसे करने से मंगल दोष शांत हो जाता है। इसके अलावा इससे स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है, साथ ही इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार 7 प्रकार के प्रदोष होते हैं, जो इस प्रकार हैं - रवि प्रदोष,सोम प्रदोष, भौम प्रदोष, सौम्यवारा प्रदोष, गुरुवारा प्रदोष,भ्रुगुवारा प्रदोष व शनि प्रदोष। मान्यता है कि रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। वहीं सर्वकार्य सिद्धि के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य और शीघ्रता से पूर्ण होती है।

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इन्हीं प्रदोष में एक है भौम प्रदोष, इसे मंगल प्रदोष भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत रखता है उसकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, इससे मंगल दोष शांत होता है और दरिद्रता का भी नाश होता है। प्रदोष व्रत की कथा भी काफी पुण्य फल देने वाली मानी जाती है।

मंगलवार को आने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

प्रदोष व्रत की पूजा-विधि:
प्रदोष व्रत की पूजा सुबह सूर्योदय और शाम को प्रदोष काल यानी कि गोधूली बेला में करनी उचित रहती है।
प्रदोष व्रत के साधक को दिन सुबह सूर्योदय से पहले बिस्तर त्याग देना चाहिए। इसके बाद नहा-धोकर पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव का भजन कीर्तन और पूजा-पाठ करना चाहिए।

वहीं इस दिन पूजाघर में साफ-सफाई करनी चाहिए। जिसके तहत पूजा के स्थान और पूरे घर में गंगाजल से पवित्रीकरण करना चाहिए। पूजाघर को गाय के गोबर से लीपना चाहिए। हिंदू धर्म में गाय के गोबर को काफी पवित्र माना गया है, यदि आप ऐसा नहीं भी करते हैं तो परेशानी की बात नहीं है।

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ऐसे में अगर केले के पत्ते मिल सकें तो इन पत्तों और रेशमी कपड़ों की सहायता से एक मंडप तैयार करना चाहिए। आटे, हल्दी और रंगों की सहायता से पूजाघर में एक अल्पना (रंगोली) बनानी चाहिए व्रती को कुश के आसन पर बैठ कर उत्तर-पूर्व की दिशा में मुंह करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।

इस मंत्र का करें जाप:
प्रदोष की पूजा करते समय साधक को भगवान शिव के मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का पाठ करना चाहिए। इसके बाद शिवलिंग पर दूध, जल और बेलपत्र चढ़ाने चाहिए।


भौम प्रदोष व्रत की कथा....
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था, वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।

हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करें?

पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।

हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे।

वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज, लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।

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साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।

वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।

इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।

इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ, लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। यहां अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। तो हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

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अलग-अलग तरह के प्रदोष व्रत और उनसे मिलने वाले लाभ...
प्रदोष व्रत का अलग-अलग दिन के अनुसार अलग-अलग महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन यह व्रत आता है उसके अनुसार इसका नाम और इसके महत्व बदल जाते हैं।

अलग-अलग वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ...
: जो उपासक रविवार को प्रदोष व्रत रखते हैं, उनकी आयु में वृद्धि होती है अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
: सोमवार के दिन के प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम भी कहा जाता है और इसे मनोकामनायों की पूर्ती करने के लिए किया जाता है।
: जो प्रदोष व्रत मंगलवार को रखे जाते हैं उनको भौम प्रदोषम कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं नहीं होती। इसके अलावा मंगल दोष भी शांत होता है
: बुधवार के दिन इस व्रत को करने से हर तरह की कामना सिद्ध होती है।
: बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है।
: वो लोग जो शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।
: शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहा जाता है और लोग इस दिन संतान प्राप्ति की चाह में यह व्रत करते हैं। अपनी इच्छाओं को ध्यान में रख कर प्रदोष व्रत करने से फल की प्राप्ति निश्चित हीं होती है।



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