भगवान शिव के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ भी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस क्षेत्र में केदारनाथ धाम के साथ-साथ चार स्थान और हैं, जो पंच केदार कहलाते हैं। यहां भगवान शंकर के विभिन्न विग्रहों की पूजा होती है।
पंच केदार का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में स्पष्ट रूप से वर्णित है। पंच केदार में प्रथम केदार भगवान केदारनाथ हैं, जिन्हें बारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप में भी जाना जाता है। द्वितीय केदार मद्महेश्वर हैं। तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ और पंचम केदार कलेश्वर हैं।
पंच केदार की कथा है कि महाभारत युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे। पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पहुंचे। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां के बारे में कहा जाता है कि यहां महादेव का शक्ति पुंज मौजूद है।
MUST READ : लुप्त हो जाएगा आठवां बैकुंठ बद्रीनाथ : जानिये कब और कैसे!
दरअसल पंचकेदारों में दूसरा केदार है मदमहेश्वर... इसके संबंध में मान्यता है कि आदि केदारेश्वर भगवान शिव की नाभि का पूजन यहां होता है। शिव के मध्यभाग के दर्शन के कारण इसे मदमहेश्वर नाम मिला। यहां मौजूद शिवलिंग की आकृति नाभि के समान ही है।
मद्महेश्वर मंदिर बारह हजार फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है। मद्महेश्वर द्वितीय केदार है, यहां भगवान शंकर के मध्य भाग के दर्शन होते है। दक्षिण भारत के शेव पुजारी केदारनाथ की तरह यहां भी पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता है कि यहां का जल इतना पवित्र है कि कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। शीतकाल में छह माह यहां पर भी कपाट बंद होते हैं। कपाट खुलने पर यहां पूजा अर्चना होती है।
केदारघाटी के कालीमठ से होकर यहां जाने के कारण विषम भौगोलिक परिस्थितियां यहां तीर्थयात्रियों की संख्या सीमित कर देती है। यहां जाने के लिए रुद्रप्रयाग से केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग से ऊखीमठ पहुंचना होता है। ऊखीमठ से उनियाणा गांव तक मोटर मार्ग से पहुंचा जाता है।
इसके बाद रांसी गौंडार गांव से 10 किलोमीटर की चढ़ाई पार कर भगवान मदमहेश्वर के मंदिर तक पहुंचना होता है। यहां के लिए दूसरा मार्ग गुप्तकाशी से भी है, जहां से कालीमठ तक वाहन से जाने के बाद आगे पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है, यह ट्रैकिंग रूट काफी रमणीक है।
MUST READ : शिवलिंग की घर में पूजा करते समय इन बातों का रखें खास ख्याल
द्वितीय केदार- मध्यमहेश्वर
मध्यमहेश्वर पंचकेदारों में द्वितीय केदार हैं जिन्हें अपभ्रंश रूप में स्थानीय लोगों द्वारा मदमहेश्वर कहा जाता है। मध्यमहेश्वर तीर्थ के बारे में केदारखण्ड के अध्याय-48 में लिखा गया है कि इस शिव क्षेत्र के दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप दूर होते हैं और यह यात्रा शिवभक्ति के लिये होती है|
मध्यमहेश्वर महात्म्यं सोपाख्यानं मया तव।
सर्वपापहरंपुण्यंकथितम्शिवभक्तिदम्।।
मध्यमहेश्वर धाम रुद्रप्रयाग जिले में पड़ने वाले हिमालय क्षेत्र में चौखम्बा पर्वत के समक्ष एक मैदाननुमा ढलान पर स्थित है। यहां पर शिवजी के नाभि या मध्य भाग की पूजा होती है। इसलिये यह मध्यमहेश्वर नाम से जाना जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में नाभी रुपी शिवलिंग स्थापित है। मन्दिर के बाहर एक मण्डप है। मन्दिर, छत्र शिखर शैली में बनी है जिसका शीर्ष काष्ठ से निर्मित है।
इस मन्दिर की व्यवस्था बदरीकेदार मन्दिर समिति देखती है। मन्दिर में पूजा अर्चना के लिये यहां पर केदारनाथ के रावल द्वारा दक्षिण भारतीय पुजारी की व्यवस्था की जाती हैं। मन्दिर में पण्डे नहीं होते है। इस मन्दिर के पीछे दो अन्य छोटे मन्दिर हैं। मन्दिर के पीछे की तरफ वन क्षेत्र हैं। मन्दिर के डेढ़ किमी की ऊंचाई पर बूढ़ा मध्यमहेश्वर का छोटा मन्दिर है।
MUST READ : भगवान शिव की इन चीजों का ये खास रहस्य नहीं जानते होंगे आप
बूढा़ मद्महेश्वर...
भगवान मद्महेश्वर के धाम से लगभग दो किलोमीटर की ऊंची चोटी पर भगवान बूढा़ मद्महेश्वर का धाम है। वेद और पुराणों में वर्णित है कि भगवान मद्महेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद भगवान बूढा़ मद्महेश्वर की भी पूजा-अर्चना बेहद जरूरी है। तब ही यात्रा सफल मानी जाती है।
शिव पुराण के केदारखण्ड मेंं बताया गया है कि उच्च हिमालयी भू-भाग में केदार भवन के दक्षिण भाग में तीन योजन की दूरी पर द्वितीय केदार मद्महेश्वर और बूढा़ मद्महेश्वर का तीर्थ विराजमान है।
बरसात के बाद बूढा़ मद्महेश्वर धाम में सैकडा़ें प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। बूढा़ मद्महेश्वर धाम के चारों तरफ का भू-भाग बरसात के वक्त कई तरह की जडी़ बूटियों से सुसज्जित रहता है।
MUST READ : देवाधि देव महादेव- जानें भगवान शिव क्यों कहलाए त्रिपुरारी
महादेव यहां जागृत रूप में...
शास्त्रों में ये भी बताया गया है कि महादेव यहां जागृत रूप में विराजमान रहते हैं। इस जगह की अलौकिकता से खुद दुनिया के बड़े बड़े वैज्ञानिक भी हैरान हैं। आपने इससे पहले अल्मोड़ा के कसार देवी मंदिर के बारे में सुना होगा कि वहां एक शक्ति पुंज मौजूद है। वैज्ञानिक भी इस बारे में बता चुके हैं। वैज्ञानिक ये भी बताते हैं कि उत्तराखंड में मौजूद मदमहेश्वर धाम के दो किलोमीटर ऊपर मौजूद बूढ़ा मदमहेश्वर भी इस एक शक्ति पुंज का केंद्र बिंदु है।
बूढ़ा मदमहेश्वर के बारे में एक और खास बात ये भी है कि साल में 6 महीने से ज्यादा वक्त ये जगह बर्फ से ढकी रहती है। बर्फ हटने के बाद ये जगह फूलों से घिर जाती है और बेहद खूबसूरत दिखने लगती है। सैकड़ों प्रजाति के फूलों से घिरी इस जगह के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां जड़ी बूटियों का भी भंडार है।
MUST READ : दुनिया में शिवलिंग पूजा की शुरूआत होने का गवाह है ये ऐतिहासिक और प्राचीनतम मंदिर
MUST READ : केदारनाथ - जो कहलाता है जागृत महादेव, जानें क्यों?
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2WpsQOP
EmoticonEmoticon