सनातन धर्म की सुख और सौभाग्य प्रदान करने वाली प्रमुख अधिष्ठात्री देवियां, जो हैं शक्ति का पर्याय

सनातन धर्म में कई तरह के देवताओं का वर्णन किया गया है। जिसमें देवताओं के साथ ही देवियों का भी वर्णन है। इसी के तहत वेदों में देवताओं की संख्या 33 कोटी ( 12 आदित्य + 8 वसु + 11 रूद्र + 2 अश्विनी कुमारों को मिलाकर कुल 33 कोटी देवता ) बताई गई है।

इनमें मुख्य रुप से त्रिदेव यानि भगवान विष्णु, भगवान शिव व ब्रह्मा को माना गया,जिनके अपने अपने कार्य बंटे हुए हैं। वहीं आदि पंच देवों में श्रीगणेश, श्रीहरी विष्णु,देवी दुर्गा,भगवान शिव व सूर्य देव आते हैं।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हिंदू धर्म में शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले कई देवी-देवताओं का वर्णन किया गया है। इन सभी को पूजनीय और शक्तिशाली माना जाता है। ऐसा भी माना जाता है की यही देवी-देवता ब्रह्मांड का निर्माण, संरक्षण और विनाश करते हैं।

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आज शुक्रवार का दिन है और यह दिन सप्ताह के दिनों के आधार पर देवियों का दिन माना गया है। देवियों को ही सनातन धर्म में शक्ति माना गया है, चूंकि हिन्दुओं में 9 अंक का अत्यधिक महत्व है, अत: ऐसे में आज हम आपको हिन्दू धर्म की नौ प्रमुख देवियों के बारे में बता रहे हैं...

1. देवी दुर्गा
इन्हें आदि शक्ति के रुप में माना गया है, जिसके चलते इन्हें आदि पंच देवों में भी स्थान प्राप्त है। देवी दुर्गा के अनेक रूपों का वर्णन हमें कई धार्मिक पुस्तकों में मिलता है।

वहीं देवी दुर्गा का पूजन नवरात्रि के दौरान बड़ी धूम धाम से किया जाता है। हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा को सबसे शक्तिशाली देवी माना गया है। देवी दुर्गा ने महिषासुर जैसे शक्तिशाली असुर का वध कर मनुष्य जाति का उद्धार किया था। समस्त ब्रह्मांड में मां दुर्गा स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।

इनकी सवारी भी शेर या बाघ है। उनके हाथों में त्रिशूल है, जिसे उन्हें भगवान शंकर ने दिया था। इसके अलावा भगवान विष्णु ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान दिया। पवनदेव ने धनुष और बाण भेंट किए। इंद्रदेव ने वज्र और घंटा अर्पित किया। यमराज ने कालदंड भेंट किया और सूर्य देव ने माता को तेज प्रदान किया।

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2. देवी पार्वती
पार्वती देवी पर्वत राज हिमालय और हिमवान की बेटी है। यानि ये माना जाता है की माता पार्वती देवी गंगा की बहन हैं। उन्हें गौरी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी सवारी भी शेर या बाघ है।

वह भगवान शिव की पत्नी और कार्तिकेय व गणेश की मां हैं। माता पार्वती सती का अवतार हैं, जो कभी शिव की पत्नी थीं, लेकिन अपने पति के प्रति अपने पिता के अपमानजनक व्यवहार के कारण वे आग में भस्म हो गई थीं। माता पार्वती देखभाल और मातृत्व शक्ति का प्रतीक हैं।

3. देवी लक्ष्मी
देवी लक्ष्मी को धन और समृद्धि की शक्तिशाली देवी माना जाता है। दीपावली के दिन भक्त अपने घरों को रोशनी और फूलों की मालाओं से सजाते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी है।

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लक्ष्मी न केवल भौतिकवादी धन का प्रतिनिधित्व करती है बल्कि महिमा, आनंद और सम्मान का भी प्रतिनिधित्व करती है। जो भी भक्त श्रद्धा से देवी लक्ष्मी की नित्य पूजा करता है, उसे जीवन में किसी भी दुःख का सामना नहीं करना पड़ता है। वहीं शुक्रवार की कारक देवी भी इन्हें ही माना जाता है।


4. देवी सरस्वती
हिन्दू धर्म में माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत और विद्या की देवी माना जाता है। इन्हें शारदा के नाम से भी जाना जाता है। वह ब्रह्मा की पत्नी है। इनका वाहन हंस है।

उनकी हाथों में वीणा और पुस्तक है। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा मनाई जाती है। भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और अपने मंदिरों में ज्ञान और ज्ञान का आशीर्वाद पाने के लिए श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

5. देवी काली
भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली मां काली भगवान शिव के नेत्र से उत्पन्न हुई है। शक्तिशाली देवी काली को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। देवी काली को ज्ञान की देवी और आत्मा को मुक्त कर मोक्ष देने वाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है।

देवी काली को माता पार्वती का अवतार माना गया हैं। ऐसा माना जाता है की माता पार्वती ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए काली का रूप धारण किया था। मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा शोभित है। कंठ में कराल विष का चिह्न और हाथ में त्रिशूल, खोपड़ियों की माला, चाकू और एक खून का कटोरा माता के रूप को भयावह बनता है।

6. देवी गंगा
हिंदु धर्म में देवी गंगा की नदी के रूप में पूजा की जाती है। लोगों का विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। साथ ही जीवन-मरण के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है। देवी गंगा के संबंध में मान्यता है कि यह भगवान विष्णु के अंगुठे से निकल कर पृथ्वी पर आईं हैं।

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पृथ्वी पर गंगा का अवतरण इक्ष्वाकु वंश यानि श्री रामचंद्र जी के वंशज भागीरथ के अनुरोध पर हुआ था। मान्यता के अनुसार राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मोक्ष की प्राप्ति और देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की।

भागीरथ के तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने देवी गंगा को पृथ्वी पर अवतरित होने का का आदेश दिया। तब शिवजी ने गंगा के वेग को अपनी जटाओं में समेट लिया और उंसकी छोटी-छोटी धाराओं को ही पृथ्वी पर गिरने दिया। पुराणों में कहा गया है की गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों में बहती है-स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल। इसलिए संस्कृत भाषा में उसे त्रिपथगा कहा जाता है।


7. देवी तुलसी
देवी तुलसी को हिन्दू धर्म में पौधे के रूप में पूजा जाता है। तुलसी के पूजनीयता से जुडी कई कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार देवी तुलसी अपने पूर्व जन्म में जालंधर की पत्नी वृंदा थी। जालंधर का जन्म शिवजी की तीसरी आंख से हुआ था जिस वजह से वह बहुत ही शक्तिशाली था।

मान्यता के अनुसार जालंधर को उसकी पत्नी वृंदा की पतिव्रता के कारण कोई नहीं मार सकता था। जिस वजह से वह देवताओं के लिए खतरा बनता जा रहा था। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। विष्णु ने दुनिया को जालंधर के अत्याचार से बचाने के लिए जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के साथ रहने लगे। जिसके बाद वृंदा का सतित्व ख़त्म हो गया और शिवजी ने जलधर का वध कर दिया।

यह बात जब वृंदा को पता चली तो उसने विष्णु जी को पत्थर के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया,जिसे आज भी शालिग्राम के रूप में पूजा जाता है। वृंदा खुद चिता की अग्नि में जलकर भस्म हो गई और फिर उसी जगह वृंदा ने तुलसी के पौधे के रूप में जन्म लिया।

8. देवी सीता
देवी सीता प्रभु राम की पत्नी और मिथिला नरेश जनक की पुत्री थी। नेपाल के जनकपुर में सीता जी के नाम पर जानकी मंदिर भी है। ऐसा माना जाता है कि देवी सीता का जन्म धरती से हुआ था। इसलिए उन्हें धरती माता की बेटी भी कहा जाती है।

श्रीराम को वनवास मिलने के बाद देवी सीता उनके साथ वन भी गईं। जहां से लंकापति रावण उनका अपहरण कर लिया और वह बाद में प्रभु राम के हाथों मारा गया। लंका से वापस आने के बाद माता सीता को अपनी शुद्धता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ा, देवी सीता स्त्री जाति की शक्ति और सदाचार का प्रतिनिधित्व करती हैं।

9. कामधेनु गाय
गाय के रूप में कामधेनु की उत्पति समुद्र मंथन के समय हुई थी। पुराणों में कामधेनु को सभी गायों की माता कहा गया है। हमारे धर्म में कामधेनु को खूबियों की देवी माना गया है।

जो भक्त सच्चे मन से कामधेनु गाय की पूजा करते हैं वह उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। कामधेनु के शरीर का प्रत्येक भाग प्रतीकात्मक महत्व रखता है। उदाहरण के लिए, उसके चार पैर चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं, सींग देवताओं का प्रतीक हैं, और कूबड़ हिमालय के समान खड़े हैं। हिन्दू धर्म में गाय को माता के रूप में भी पूजा जाता है, क्योंकि उसका दूध मानव जीवन का पोषण करता है।



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