कौन है देवर्षि नारद? और क्या कहता है उनका पुराण यानि 'नारद पुराण' कलयुग के बारे में....

कोरोना संक्रमण काल में जहां हम हर दिन सनातन धर्म के पौराणिक शास्त्रों में लिखी महामारी की बात खोज रहे हैं। वहीं आज हम आपको देवर्षि ( देवऋषि - देवों के ऋषि ) नारद और उनके द्वारा रचित पुराण यानि नारद पुराण से जुड़े कुछ खास रहस्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसमें न केवल उन्होंने पाप पुण्य से जुड़ी बातों के बारे में बताया है, बल्कि कलयुग से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में तक जिक्र किया है, जिसके बारे में आज बहुत ही कम लोग जानते हैं।

तो चलिये सबसे पहले बात करते हैं देवऋषि नारद की...जिनके बारें में मान्यता है कि वैदिक पुराणों के अनुसार नारद मुनि देवताओं के दूत और सूचनाओं का स्रोत हैं। वहीं ये भी माना जाता है कि नारद जी तीनों लोकों, आकाश, स्‍वर्ग, पृथ्‍वी, पाताल या जहां चाहे विचरण कर सकते हैं।

यही नहीं उन्‍हें धरती के पहले पत्रकार की उपाधि भी दी गई है। कहते हैं कि सूचनाओं को इधर-उधर से पहुंचाने के लिए नारद मुनि पूरे ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं। हालांकि कई बार उनकी सूचनाओं से खलबली भी मची है, लेकिन उनसे हमेशा ब्रह्मांड का भला ही हुआ है। नारद संवाद का सेतु जोड़ने का कार्य करते हैं तोड़ने का नहीं।

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नारद जी को बुद्धि और अथाह ज्ञान प्राप्त होने की वजह से सुर, असुर, गंधर्व और मानव आदि सभी बहुत सम्मान देते हैं। देवर्षि नारद को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। वह तीनों लोकों में कहीं भी कभी भी किसी भी समय प्रकट हो सकते हैं।

शास्त्रों के अनुसार सबको जलदान, ज्ञानदान देने में निपुण हैं 'नारद'
"नारद मुनि के नाम का शाब्दिक अर्थ जाना जाए तो ‘नार’ शब्द का अर्थ है जल। वह सबको जलदान, ज्ञानदान और तर्पण करने में निपुण होने के कारण ही नारद कहलाए। शास्त्रों में अथर्ववेद में भी नारद नाम के ऋषि का उल्लेख मिलता है।

प्रसिद्ध मैत्रायणई संहिता में भी नारद को आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है। अनेक पुराणों में नारद जी का वर्णन बृहस्पति जी के शिष्य के रूप में भी मिलता है। नारद जी हमेशा वीणा लिए रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार ‘वीणा’ का बजना शुभता का प्रतीक है इसलिए नारद जयंती पर ‘वीणा’ का दान विभिन्न प्रकार के दान से श्रेष्ठ माना गया है।

हाथ में वीणा लेकर पृथ्वी से लेकर आकाश लोक, स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक से लेकर पाताल लोक तक हर प्रकार की सूचनाओं के आदान-प्रदान करने के कारण, जब भी वह किसी लोक में पहुंचते हैं तो सभी को इस बात का इंतजार रहता है कि वह जिस लोक से आए हैं वहां की कोई न कोई सूचना अवश्य लाए होंगे। ब्रह्मांड की बेहतरी के लिए वह विश्वभर में भ्रमण करते रहे हैं।"

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क्या कहता है देवर्षि द्वारा रचित नारद पुराण ?
"अतिथि को देवता के समान माना गया है। अतिथि का स्वागत देवार्चन समझकर ही करना चाहिए। वर्णों और आश्रमों का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए यह पुराण ब्राह्मण को चारों वर्णों में सर्वश्रेष्ठ मानता है। उनसे भेंट होने पर सदैव उनका नमन करना चाहिए।

क्षत्रिय का कार्य ब्राह्मणों की रक्षा करना है और वैश्य का कार्य ब्राह्मणों का भरण-पोषण और उनकी इच्छाओं की पूर्ति करना है। आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत ब्रह्मचर्य का कठोरता से पालन करने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वालों को अन्य तीनों आश्रमों (ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और सन्यास) में विचरण करने वालों का ध्यान रखने की बात कही गई है।"

नारद पुराण के अनुसार- 'पाप, पापी और ब्रह्मचर्य'
'पाप या गुनाह मनुष्य द्वारा किए गए उन कार्यों को कहा जाता है, जो किसी भी धर्म में अस्वीकार्य माने जाते हैं। वे सभी कार्य, जो अध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों का ह्रास करते हों, या आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करते हों, पाप या गुनाह की श्रेणी में आते हैं। वह व्यक्ति, जो पाप करता है, पापी या गुनहगार कहलाता है।'

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: 'पापियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्महत्या का दोषी है, मदिरापान करता है, मांस भक्षण करता है, वेश्यागमन करता है, तामसिक भोजन खाता है तथा चोरी करता है, वह पापी है। नारद पुराण का प्रतिपाद्य विषय विष्णुभक्ति है।'

: 'ब्रह्मचर्य योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है। ये वैदिक वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार ये 0-25 वर्ष तक की आयु का होता है और जिस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये शिक्षा ग्रहण करनी होती है।'

: 'अपना भला चाहने वाले को बाएं हाथ से जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।'

नारद पुराण के अनुसार- अपने पास जो है उसी से संतुष्ट हों...
'जो व्यक्ति संतोष पूर्वक अपने भोजन और धन से संतुष्ट होता है उसके घर में लक्ष्मी का सदा निवास रहता है, उसकी प्रगति निश्चित होती है। अतः अपने पास जो हो उसी से मतलब रखना चाहिए, दूसरों के अन्न में लोभ नहीं रखना चाहिए।'

: 'कभी भी दिन में नहीं सोना चाहिए। जो मनुष्य दिन में सोता है, उसे धन की कमी होती है। वो व्यक्ति बीमार रहता है और उसकी कम आयु में मृत्यु भी हो जाती है।

: 'किसी भी व्यक्ति अपने दोनों हाथों से कभी अपना सिर खुजलाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।'

: 'सिर में तेल लगाते समय हथेलियों पर जो तेल बच जाए उसे शरीर पर नहीं मलना चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है। इससे धन की हानि होती है और स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।'

: 'किसी को भी अपने पैर से दूसरे व्यक्ति का पैर दबाकर नहीं बैठना चाहिए और न ही ऐसे सोना चाहिए। ये करने से धन की हानि होने के साथ-साथ उम्र भी घटती है।'


नारद पुराण के मुताबिक
: 'निर्वस्त्र होकर न तो नहाना चाहिए और न ही सारे कपड़े उतारकर सोना चाहिए, इससे देवताओं का अपमान होता है, माता लक्ष्मी भी नाराज हो जाती हैं।

: 'नाखून को चबाना अशुभ लक्षण है। इससे देवी लक्ष्मी नाराज होती हैं और मनुष्य बीमार होता है।'

: 'द‌िन के समय नहीं सोना चाह‌िए। द‌िन में सोने से घर में धन वैभव की कमी होती है।'

: 'बालों को मुंह में लेना नारद पुराण के अनुसार अशुभ फलदायी होता है। इससे न स‌िर्फ आप रोगी हो सकते हैं बल्क‌ि सुख में भी कमी का सामना करना पड़ता है।'

: 'पर पुरुष और स्‍त्री के साथ संबंध बनाने से बचना चाह‌िए। इससे लोक परलोक दोनों में कष्ट भोगना पड़ता है।'

: 'शाम के समय और सूर्योदय के समय सोना नहीं चाह‌िए। इस समय भगवान और अपने इष्ट देवता का ध्यान करें।'

: 'बाएं हाथ से पानी पीना गलत माना गया है। दरअसल बाएं हाथ से कोई भी काम करना अशुभ माना जाता है और पानी पीना या भोजन करना एक यज्ञ भी कहा गया है।'

: 'शराब और जुए से दूर रहें।'

नारद पुराण के अनुसार- कलियुग में क्या क्या होगा..?
'कलियुग में कृषि का नाश होगा और किसी न किसी कारण लोग दिन-रात दुखी होंगे। प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ होने पर अनाज का अंत हो जाएगा। लोग कृषि छोड़कर अन्य साधनों से की ओर पलायन करेंगे, लेकिन फिर भी उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा।'

: 'कलियुग में लोग बिना स्नान-शौच किए ही सुबह-सुबह बिना प्रभु का नाम लिए, पूजा-पाठ किए बिना ही भोजन करेंगे। लोगों को केवल अपना पेट भरने से मतलब रहेगा और इसके साथ ही शाकाहार को छोड़ लोग मांस-मछली का सेवन अधिक करेंगे।'

: 'मनुष्य साधुओं तथा ब्राह्मणों की निंदा में तत्पर रहेंगे। मनुष्यों में पाखंड की प्रचुरता और अधर्म की वृद्धि हो जाने से आयु कम हो जाएगी।'

: 'कलियुग में पाप लगातार बढ़ता जाएगा। अनुचित कार्य करने में लोगों को लाज और भय नहीं होगा। लोग व्यर्थ के वाद-विवाद में फंसकर धर्म का आचरण छोड़ बैठेंगे। लोगों का धर्म से विश्वास उठ जाएगा।'

नारद पुराण के अनुसार- कलियुग में...
: 'कलियुग आने पर श्रेष्ठ और ईमानदार मनुष्य का लोग उपहास करेंगे और उनमें दोष निकाला जाएगा। धर्म की बजाए लोग अधर्म को बढ़ावा देंगे। लोग अपने धर्म के प्रति शून्य हो जाएंगे।'

: 'घोर कलियुग के आने पर लोग अपनों का तो क्या बल्कि अपने गुरुओं का भी सम्मान नहीं करेंगे। पैसा कमाने के लिए लोग किसी भी हद तक जाएंगे। आम लोगों के बीच शिक्षा और सदाचार का महत्व कम हो जाएगा।'

: 'महिलाएं बेहद कड़वा बोलने लगेंगी और उनके चरित्र में नकारात्मकता घर चुकी होगी। महिलाओं के ऊपर न तो पिता का और न ही पति का जोर होगा। औरतें अपने मन की करेंगी वह किसी की नहीं सुनेगी।'



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