वैसे तो सनातन धर्म की कई पौराणिक किताबों में कोरोना महामारी के जिक्र की बात इन दिनों हर ओर चर्चा का विषय बनी हुई है। वहीं उज्जैन में पंचायती अखाड़े के एक वयोवृद्ध संत दिगंबर बालमुकुंद पुरी जो धार जिला के नालछा ग्राम में निवासरत हैं, का कहना है कि महाकाल संहिता नामक पुस्तक में इस महामारी का उल्लेख है व पूर्व में भी ऐसा ही वायरस आ चुका है।
उस समय भगवान महाकाल का पूजन कर वायरस का निदान किया गया था। ऐसे में अभी भी महाकाल महाराज का पूजन कर इस महामारी का विनाश संभव है। उनके अनुसार संभव हो सके तो इस पर विद्वानों से परामर्श लेकर ज्योतिर्लिंग का विशेष पूजन करवाया जाना चाहिए।
वर्तमान में भी इस आपदा से रक्षा के लिए अखाड़े के कई धर्मस्थलों पर पूजन, अनुष्ठान सतत किए जा रहे हैं। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के भिन्न भिन्न ट्रस्टों के माध्यम से राहत कोष में लगभग 2 करोड़ रुपए का योगदान दिया गया। भोजन सामग्री वितरण अनवरत जारी है।
सनातन धर्म की इस किताब में भी है कोरोना का जिक्र
वहीं जानकारों के अनुसार वर्तमान में पूरे विश्व को भयभीत करने वाली कोरोना महामारी की भविष्यवाणी आज से लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व नारद संहिता में कर दी गई थी, उनके अनुसार यह बात भी उसी समय बता दी गई थी, कि यह महामारी किस दिशा से फैलेगी। इस संबंध में कई जानकारों का भी कहना है कि यह सत्य है। क्योंकि नारद संहिता में एक जगह आया है कि...
भूपाव हो महारोगो मध्य स्यार्धवृष्टय ।
दुखिनो जंत्व सर्वे वत्स रे परीधाविनी ।।
अर्थात परीधावी नामक संवत्सर में राजाओं में परस्पर युद्ध होगा और महामारी फैलेगी बारिश भी असामान्य होगी व सभी प्राणी दुखी होंगे ।
इस महामारी का प्रारम्भ 2019 के अंत में पड़ने वाले सूर्यग्रहण से होगा ! जिसका बृहत संहिता में भी वर्णन आया है...
शनिश्चर भूमिप्तो स्कृद रोगे प्रीपिडिते जनाः
अर्थात जिस वर्ष के राजा शनि होते हैं उस वर्ष में महामारी फैलती है।
वहीं विशिष्ट संहिता में वर्णन प्राप्त होता है, कि जिस दिन इस रोग का प्रारम्भ होगा उस दिन पूर्वाभाद्र नक्षत्र होगा ।
ऐसे में जानकारों का कहना है कि यह सत्य है कि 26 दिसंबर 2019 को पूर्वाभाद्र नक्षत्र था औऱ उसी दिन से महामारी का प्रारंभ हो गया था, क्योंकि चीन से इसी समय यह महामारी जिसका की पूर्व दिशा से फैलने का संकेत नारद संहिता में पहले से ही दे रखा था, शुरू हुई थी ।
महामारी का अंत...
जहां तक इस महामारी के अंत का सवाल है तो विशिष्ट संहिता के अनुसार इस महामारी का प्रभाव 3 से 7 महीने तक रहेगा ! परंतु नव संवत्सर 2078 के प्रारम्भ से इसका प्रभाव कम होना शुरू हो जाएगा अर्थात 25 मार्च 2020 से प्रारंभ हो भारतीय नव संवत्सर जिसका नाम प्रमादी संवत्सर है, इसी दिन से करोना का प्रभाव कम होना शुरू हो जाएगा ।
वहीं इस संबंध में ज्योतिष के जानकार केबी शक्टा का कहना है कि यहां जो श्लोक लिखे हैं वे पूरी तरह से शुद्ध नहीं हैं, फिर भी कई पुराणों में कलियुग में क्या होगा लिखा हुआ है। कलिकाल लोगों के लिए कठिनाइयों से भरा हुआ है, ऐसे में ईश्वर की भक्ति जप भजन सर्वोत्तम उपाय हैं जो कलियुग में मनुष्यों के लिए सहायक होंगे।
ऐसे करें बचाव! ये मंत्र देंगे राहत...
श्री मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गासप्तशती में किसी भी बीमारी या महामारी का उपाय देवी के स्तुति तथा मंत्र द्वारा बताया गया है जो कि अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं...
रोग नाश के लिए...
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
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महामारी नाश के लिए...
ऊँ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
यह दोनों मंत्र अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं।
वहीं दूसरी ओर इन दिनों व्हाट्सएप पर शिवपुराण में कोरोना का जिक्र होने तक का दावा किया जा रहा है, साथ ही इससे बचाव के उपाय भी शिवपुराण में ही होने की बात कही जा रही है।
इतना ही नहीं इस बीमारी के उपचार तक हैं, इन ग्रंथों में...
1. न पहनें ऐसे वस्त्र
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।
विष्णुस्मृति के अनुसार व्यक्ति को एक बार पहना गया कपड़ा धोए बिना फिर से धारण नहीं करना चाहिए। कपड़ा एक बार पहनने पर वह वातावरण में मौजूद जीवाणु और विषाणु के संपर्क में आ जाता है और दोबारा बिना धोए पहनने लायक नहीं रह जाता है।
2. ऐसा में स्नान जरूर करें
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:।
वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च
विष्णुस्मृति में यह भी कहा गया है कि अगर आप श्मशान से आ रहे हों या फिर आपको उल्टी हो चुकी हो या फिर दाढ़ी बनवाकर और बाल कटवाकर आ रहे हों तो आपको घर में आकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए, नहीं तो आपको संक्रमण का खतरा बना रहता है।
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3. ऐसे कपड़ों से न पोंछें शरीर
अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:।
मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि स्नान करने के बाद जरा भी गीले कपड़ों से तन को नहीं पोंछना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा के संक्रमण की आशंका बनी रहती है। यानि किसी सूखे कपड़े (तौलिए) से ही शरीर को पोंछना चाहिए।
4. हाथ से परोसा गया खाना
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्।
धर्मंसिंधु के अनुसार नमक, घी, तेल या फिर कोई अन्य व्यंजन, पेय पदार्थ या फिर खाने का कोई भी सामान यदि हाथ से परोसा गया हो यानि उसको देते समय किसी अन्य वस्तु जैसे चम्मच आदि का प्रयोग न किया गया हो तो वह खाने योग्य नहीं रह जाता है। इसलिए कहा जाता है कि खाना परोसते समय चम्मच का प्रयोग जरूर करें।
5. यह कार्य मुंह और सिर को ढककर ही करें
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।
नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:।
वाधूलस्मृति और मनुस्मृति में कहा गया है कि हमें हमेशा ही नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर, मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। ऐसा करने पर हमारे ऊपर संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।
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