गुप्त शत्रुओं से हैं परेशान तो हनुमान जी का ये पाठ करेगा आपकी रक्षा

सनातन धर्म में हनुमान जी को कलियुग के जागृत देवता व चिरंजीवी माना गया है, जो भक्तों के सभी तरह के कष्ट को दूर करने के लिए तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन ये भी माना जाता है कि श्री हनुमान को प्रसन्न करने के लिए भक्त का अपने कर्मों के प्रति सजग रहना जरूरी है।

हनुमान जी को कलियुग का स्वामी भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता के अनुसार हनुमान जी आज भी धरती पर निवास करते हैं, और कलियुग के अंत तक हनुमान जी अपने शरीर में ही रहेंगे।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार ऐसे में जो भी साधक हनुमान जी का ध्यान करता है, उसके आसपास से नकरात्मक शक्तियां भाग जाती हैं। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है। यही कारण है कि हर संकट की काट के लिए हनुमान जी की पूजा का महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं कि हनुमानजी का ऐसा कौन सा पाठ है, जो शत्रुओं से निजात दिलाता है — यहां तक कि यह पाठ समस्त गुप्त शत्रुओं से भी रक्षा करता है।

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जानकारों के अनुसार व्यक्ति जब प्रगति करता है, तो उसकी प्रगति से चिढ़कर उसके अपने ही उसके शत्रु बन जाते हैं और उसे सहयोग देने के स्थान पर वही उसके मार्ग को अवरूद्ध करने लग जाते हैं। ऐसे शत्रुओं से निपटना अत्यधिक कठिन होता है।
> ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रात:काल सात बार हनुमान बाण का पाठ करें।
इस पाठ के दौरान हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाएं।

: पांच लौंग पूजा स्थान में देशी कपूर के साथ जलाएं।

: फिर भस्म से तिलक करके बाहर जाए।

यह प्रयोग जीवन में समस्त शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होगा, वहीं इस यंत्र के माध्यम से आप अपनी मनोकामनाओं की भी पूर्ति करने में सक्षम होंगे।

 

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बजरंग बाण बचाता है इस संकट से :-
बहुत से व्यक्ति अपने कार्य या व्यवहार से लोगों को रुष्ट कर देते हैं, इससे उनके शत्रु बढ़ जाते हैं। कुछ लोगों को स्पष्ट बोलने की आदत होती है जिसके कारण उनके गुप्त शत्रु भी होते हैं। यह भी हो सकता है कि आप सभी तरह से अच्छे हैं फिर भी आपकी तरक्की से लोग जलते हो और आपके विरुद्ध षड्‍यंत्र रचते हो।

पंडित शर्मा के अनुसार ऐसे समय में यदि आप सच्चे हैं तो श्री बजरंग बाण आपको बचाता है और शत्रुओं को दंड देता है। बजरंग बाण से शत्रु को उसके किए की सजा मिल जाती है, लेकिन इसका पाठ एक जगह बैठकर अनुष्ठानपूर्वक 21 दिन तक करना चाहिए और हमेशा सच्चाई के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि हनुमानजी सिर्फ पवित्र लोगों का ही साथ देते हैं। इस पाठ से 21 दिन में तुरंत फल मिलता है।

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बजरंग बाण : इसके पाठ से पीड़ाएं व शत्रु समाप्त हो जाते हैं, निःसंदेह !
हनुमान जी की कृपा पाने हेतु सभी भक्तजन भिन्न -भिन्न प्रकार से हनुमान जी की पूजा करते है जिनमें नियमित रूप से हनमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करना हनुमान जी को अति प्रिय है। हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ हमेशा बोलकर करने चाहिए जबकि मंत्र द्वारा आराधना में मंत्र को मन ही मन उच्चारण करना चाहिए।

ऐसी मान्यता है कि जो भक्त नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करते है उनके लिए यह अचूक बाण का कार्य करता है। किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए बजरंग बाण का प्रयोग करने से कार्य अवश्य ही सिद्ध होता है। जिन व्यक्तियों के बने-बनाये कार्य पूरे होते होते बिगड़ जाते हों, उन्हें अपनी दैनिक पूजा में बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए।

नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ व्यक्ति में साहस बढ़ाने के साथ-साथ सकारात्मक उर्जा का संचार भी करता है। नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करने से सभी प्रकार से भय आदि से मुक्ति मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ता है।

यदि आप अपने शत्रुओं से परेशान है तो बजरंग बाण का नियमित सात बार पाठ करें और मात्र इक्कीस दिन में ही आपके शत्रु परास्त होने लगेंगे। अपने व्यापार और कारोबार में वृद्धि के लिए अपने ऑफिस (कार्य स्थल ) पर पांच मंगलवार तक सात बार बजरंग बाण का पाठ करें।

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बजरंग बाण....
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
जय हनुमंत संत हितकार, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।
जन के काज बिलंब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिंधु महिपारा, सुरसा बदन पैठि बिस्तारा।
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुरलोका।।
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा।
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा, अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षय कुमार मारि संहारा, लूम लपेटि लंक को जारा।
लाह समान लंक जरि गई, जय-जय धुनि सुरपुर नभ भई।।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अंतरयामी।
जय-जय लखन प्रान के दाता, आतुर ह्वै दुख करहु निपाता।।
जय हनुमान जयति बल-सागर, सुर-समूह-समरथ भट-नागर।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले, बैरिहि मारु बज्र की कीले।।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा, ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा।
जय अंजनि कुमार बलवंता, शंकरसुवन बीर हनुमंता।।
बदन कराल काल-कुल-घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक।
भूत, प्रेत, पिसाच निसाच, र अगिन बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की, राखु नाथ मरजाद नाम की।
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै, राम दूत धरु मारु धाइ कै।।
जय-जय-जय हनुमंत अगाधा, दुख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत कछु दास तुम्हारा।।
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं, तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं।
जनकसुता हरि दास कहावौ, ताकी सपथ बिलंब न लावौ।।
जै जै जै धुनि होत अकासा, सुमिरत होय दुसह दुख नासा।
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं, यहि औसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई, पायँ परौं, कर जोरि मनाई।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता, ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल, ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल।
अपने जन को तुरत उबारौ, सुमिरत होय आनंद हमारौ।।
यह बजरंग-बाण जेहि मारै, ताहि कहौ फिरि कवन उबारै।
पाठ करै बजरंग-बाण की, हनुमत रक्षा करै प्रान की।।
यह बजरंग बाण जो जापैं, तासों भूत-प्रेत सब कापैं।
धूप देय जो जपै हमेसा, ताके तन नहिं रहै कलेसा।।
ताके तन नहिं रहै कलेसा।।
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान।।

ऐसे समझें : बजरंग बाण...
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥ अर्थात जो भी राम भक्त श्री बजरंग बलि हनुमान के सामने संकल्प लेकर पूरी श्रद्धा व प्रेम से उनसे प्रार्थना करता है श्री हनुमान उनके सभी कार्यों को शुभ करते हैं।
॥चौपाई॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

अर्थात : हे संतों का कल्याण करने वाले श्री हनुमान आपकी जय हो, हे प्रभु हमारी प्रार्थना सुन लिजिए। हे बजरंग बली वीर हनुमान अब भक्तों के कार्यों को संवारने में देरी न करें व सुख प्रदान करने के लिए जल्दी से आइए।

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥

अर्थात : हे बजरंग बलि जैसे आपने कूद कर सागर को पार कर लिया था। सुरसा जैसी राक्षसी ने अपने विशालकाय शरीर से आपको लंका जाने से रोकना भी चाहा, लेकिन जिस तरह आपने उसे लात मार कर देवलोक पंहुचा दिया था।

जिस तरह लंका जाकर आपने विभिषण को सुख दिया। माता सीता को ढूंढकर परम पद की प्राप्ति की। आपने रावण की लंका के बाग उजाड़े और आप रावण के भेजे सैनिकों के लिए यम के दूत बने। जितनी तेजी से आपने अक्षय कुमार का संहार किया, जैसे आपने अपनी पूंछ से लंका को लाख के महल के समान जला दिया जिससे आपकी जय जयकार सुर पुर यानि स्वर्ग में होने लगी।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दु:ख करहुं निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥

अर्थात : हे स्वामी अब किस कारण आप देरी कर रहे हैं, हे अंतर्यामी कृपा कीजिये। भगवान राम के भ्राता लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले हे बजरंग बलि हनुमान आपकी जय हो। मैं बहुत आतुर हूं, आप मेरे कष्टों का निवारण करें।

हे गिरिधर (पहाड़ को धारण करने वाला) सुख के सागर बजरंग बलि आपकी जय हो। सभी देवताओं सहित स्वयं भगवान विष्णु जितना सामर्थ्य रखने वाले पवन पुत्र हनुमान आपकी जय हो। हे परमेश्वर रुपी हठीले हनुमान बज्र की कीलों से शत्रुओं पर प्रहार करो। अपनी बज्र की गदा लेकर बैरियों का विनाश करो। हे बजरंग बलि महाराज प्रभु इस दास को छुटकारा दिलाओ।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥

अर्थात : हे वीर हनुमान ओंकार की हुंकार भरकर अब कष्टों पर धावा बोलो व अपनी गदा से प्रहार करने में विलंब न करें। हे शक्तिमान परमेश्वर कपीश्वर बजरंग बलि हनुमान। हे परमेश्वर हनुमान दुश्मनों के शीश धड़ से अलग कर दो।
भगवान श्री हरि खुद कहते हैं कि उनके शत्रुओं का विनाश रामदूत बजरंग बलि हनुमान तुरंत आकर करते हैं। हे बजरंग बलि मैं आपकी दिल की अथाह गहराइयों से जय जयकार करता हूं लेकिन प्रभु आपके होते हुए लोग किन अपराधों के कारण दुखी हैं।

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥

अर्थात: हे महावीर आपका ये दास पूजा, जप, तप, नियम, आचार कुछ भी नहीं जानता, जंगलों में, उपवन में, रास्ते में, पहाड़ों में या फिर घर पर कहीं भी आपकी कृपा से हमें डर नहीं लगता। हे प्रभु मैं आपके चरणों में पड़कर अर्थात दंडवत होकर या फिर हाथ जोड़कर आपको मनाऊं। इस समय मैं किस तरह आपकी पुकार लगाऊं हे अंजनी पुत्र, हे भगवान शंकर के अंश वीर हनुमान आपकी जय हो।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥
चरण शरण करि जोरि मनावों। यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥

अर्थात : हे वीर हनुमान आपका शरीर काल के समान विकराल है। आप सदा भगवान श्री राम के सहायक बने सदा उनके वचन की पालना की है। भूत, प्रेत, पिशाच व रात्रि में घूमने वाली दुष्ट आत्माओं को आप अपनी अग्नि से भस्म कर देते हैं।

आपको भगवान राम की शपथ है इन्हें मारकर भगवान राम व अपने नाम की मर्यादा रखो स्वामी। आप माता सीता के भी दास कहलाते हैं आपको उनकी भी कसम हैं इस कार्य में देरी न करें। आकाश में भी आपकी जय जयकार की ध्वनी सुनाई दे रही है। आपके स्मरण से दुष्कर कष्टों का भी नाश हो जाता है। आपके चरणों की शरण लेकर हाथ जोड़कर आपसे विनती है प्रभु, आपको किस तरह पुकारुं, मेरा पथ-प्रदर्शन करें, मुझे राह सुझाएं मैं क्या करुं।

ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहम पराने खल दल॥
अर्थात : हे वीर हनुमान आपको भगवान श्री राम की दुहाई है उठकर चलो आपके पांव गिरते हैं आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।

हे सदा चलते रहने वाले हनुमान ऊँ चं चं चं चं चले आओ। ऊँ हनु हनु हनु हनु श्री हनुमान चले आओ। ऊँ हं हं हे वानर राज आपकी हुंकार से राक्षसों के दल सहम गए हैं, भयभीत हो गए हैं ऊँ सं सं।

यहि बजरंग बाण जेहि मारो। ताहि कहो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा॥

अर्थात : हे बजरंग बलि श्री हनुमान अपने भक्तजनों का तुरंत कल्याण करो। आपके सुमिरन से हमें आनंद मिले। जिसको यह बजरंग बाण लगेगा फिर उसका उद्धार कौन कर सकता है।

जो इस बजरंग बाण का पाठ करता है श्री हनुमान स्वयं उसके प्राणों की रक्षा करते हैं। जो भी इस बजरंग बाण का जाप करता है, उससे भूत-प्रेत सब डरकर कांपने लगते हैं। जो बजरंग बलि महावीर हनुमान को धूप आदि देकर बजरंग बाण का जाप करता है उसे किसी प्रकार कष्ट नहीं सताता।

॥दोहा॥
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥
यानि जो प्रेम से महावीर श्री हनुमान का भजन करता है अपने ह्दय में सदा उनको धारण किये रहता है उनके सारे कार्यों को स्वयं हनुमान सिद्ध करते हैं।



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