सावन माह एक ओर जहां भगवान शिव का पवित्र मास माना जाता है। वहीं इसके हर मंगलवार को देवी मां को प्रसन्न करने के लिए मंगला गौरी व्रत भी किया जाता है। सप्ताह के दिनों के अनुसार भी देवी मां के तीन दिन मंगलवार, शुक्रवार व शनिवार माने गए हैं।
पंडित सुनील शर्मा के मुताबिक तंत्र शास्त्र के अनुसार श्रावण मास या किसी भी नवरात्रि में यदि दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप विधि-विधान से किया जाए तो साधक का हर कष्ट (परेशानी) दूर किया जा सकता है। वहीं इस बार 06 जुलाई 2020 से श्रावण मास का आरंभ हो चुका है।
माना जाता है इस समय शिव जी के साथ यदि देवी भक्ति भी की जाए और उनके विभिन्न मंत्रो का जाप किया जाए तो अनेक प्रकार की बाधा को दूर किया जा सकता है। वहीं यह भी माना जाता है इस माह में दुर्गा सप्तशती का पाठ भक्तों को खास फल प्रदान करता है।
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दुर्गा सप्तशती : मंत्रों का विधान और किस मंत्र के जप से होता है क्या लाभ?
पंडित शर्मा के अनुसार दुर्गा सप्तशती में हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र बताया गया है। ये मंत्र बहुत ही शीघ्र अपना प्रभाव दिखाते हैं। यदि आप मंत्रों का उच्चारण ठीक से नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से इन मंत्रों का जाप करवा सकते हैं, क्योंकि माना जाता है कि यदि आप मंत्रों का उच्चारण ठीक से नहीं करते हैं, तो इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।
मंत्र जाप की विधि....
: सुबह जल्दी उठकर शुद्ध एवं साफ वस्त्र धारण कर सबसे पहले शिव और माता दुर्गा की पूजा करें।
: इसके बाद एकांत में कुशा के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इन मंत्रों का जाप करें।
: इन मंत्रों की प्रतिदिन 5 माला जाप करने से मन को शांति तथा प्रसन्नता मिलती है। यह भी माना जाता है कि यदि जाप का समय, स्थान, आसन और जाप करने की माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं।
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ऐसे में आज हम आपको ऐसे विशेष मंत्र बता रहे हैं, जिनके संबंध में मान्यता है कि इनको सिद्ध कर सर्व बाधा मुक्त हुआ जा सकता है।
01- महामारी के नाश के लिए...
जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
02. रोग नाश के लिए...
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
03. विपत्ति नाश के लिए मंत्र...
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
04- बाधा शांति के लिए...
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनासनम्।।
05- आपत्त्ति से निकलने के लिए...
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते।।
06- बीमारी महामारी से बचाव के लिए...
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति।।
07- सुंदर पत्नी के लिए मंत्र...
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
08- इच्छित पति प्राप्ति के लिए...
ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि ।
नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।
09- भय के नाश करने के लिए...
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते ।
भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते।।
10- सर्व कल्याण के लिए मंत्र...
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:।।
11- स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने का मंत्र...
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
12- मोक्ष प्राप्ति के लिए...
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:।।
13- स्वर्ग प्राप्ति और मुक्ति के लिए...
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते।
स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।
14- आत्मरक्षा के लिए...
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
15- दरिद्रता मिटाने के लिए...
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
16- डर नाश के लिए...
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
17- पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए...
देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।।
18- इच्छित फल प्राप्ति...
एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभ।।
19- शक्ति और बल प्राप्ति के लिए...
सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमोस्तुते।।
20- जीवन के पापो को नाश करने के लिए
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव॥
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