बनारस से बैलगाड़ी पर लाए थे यहां श्री गणेश की मूर्ति,100 साल से आज भी हर रविवार को हो रहे हैं भजन

भगवान श्री गणेश जी का प्रमुख पर्व गणेश चतुर्थी इस वर्ष यानि 2020 में 22 अप्रैल, शनिवार को है। मान्यता के अनुसाऱ़ गणेश जी का जन्म Borth of Shree Ganesh भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था। वर्तमान में श्री गणेश के जन्म यानि गणेश चतुर्थी के बाद 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है।

दरअसल देशभर के लोगों को एकजुट करने और जन-जन में भक्ति-भावना जागृत करने के लिए आजादी के पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने जब गणेश पर्व मनाए जाने की शुरुआत की थी। उसी दौरान वर्तमान छत्तीसगढ़ की एक पुरानी बस्ती के समीप एक ब्राह्मण परिवार ने राजधानी के सबसे पहले गणेश मंदिर की स्थापना की थी।

बैलगाड़ी से लाए थे प्रतिमा
बताया जाता है कि 100 साल पहले रायपुर से बनारस जाने के लिए ट्रेन की सुविधा नहीं थी। उस समय बैलगाड़ी में महीनों का सफर करके भगवान श्रीगणेश की मूर्ति को लाया गया था।

हजारों ग्रामीण आते थे दर्शन करने : जब देश में गणेश उत्सव की शुरुआत हुई, तब आसपास के गांवों से हजारों ग्रामीण आते थे, पुरानी बस्ती में मनाए जाने वाले गणेश पर्व उत्सव को देखने के लिए इसी मंदिर में सबसे पहले शीश नवाते थे।

इसी मंदिर में आजादी के दीवाने देश को आजाद करने की योजनाएं बनाते थे और भगवान श्रीगणेश के समक्ष सिर झूकाने के बाद जन-जन के मन में चेतना फैलाने के लिए निकलते थे। यह राजधानी रायपुर का एक मात्र गणेश मंदिर है, जिसकी स्थापना हुए 100 साल हो चुके हैं।

प्रथम आमंत्रण पत्र श्रीगणेश को
आज भी किसी भी परिवार में शुभ कार्य हो तो सबसे पहले पुरानी बस्ती स्थित श्रीगणेश मंदिर में निमंत्रण पत्र देने भक्त आते हैं। जो लोग अन्य शहर में बस चुके हैं, वे आज भी शुभ कार्यों का निमंत्रण डाक के द्वारा श्रीगणेश के नाम से मंदिर के पते पर भिजवाते हैं।

जानिये किसने बनवाया था मंदिर...
बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दिवंगत धर्मध्वज शास्त्री ने करवाया था। चूंकि मंदिर से कुछ ही दूरी पर ऐतिहासिक जैतूसाव मठ, दूधाधारी मठ, नागरीदास मठ जैसे प्रसिद्ध मंदिर थे, जहां भगवान श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान की प्रतिमाएं थीं, लेकिन प्रथम पूज्य श्रीगणेश का एक भी मंदिर नहीं था, इसलिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, बालगंगाधर तिलक के आह्वान का असर हुआ और श्रीगणेश मंदिर की स्थापना की गई।

हर रविवार को भजन 100 साल से है जारी
मंदिर में पिछले 100 साल से मैथिल ब्राह्मण समाज के सदस्य हर रविवार को भजन-कीर्तन का आयोजन करते आ रहे हैं। कोरोना महामारी के चलते धर्मस्थल बंद होने से ढाई महीने तक कीर्तन नहीं हुआ। अब मंदिर खुल जाने से फिर से कुछ लोग परंपरा का पालन कर रहे हैं।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/31hkw61
Previous
Next Post »