अष्ठविनायक मंदिर : गणपति के ऐसे 8 मंदिर, जहां खुद प्रकट हुई उनकी प्रतिमा

हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। वहीं श्री गणेश आदि सनातन धर्म के प्रमुख आदिपंच देवों में भी शामिल हैं। अन्य भगवानों की तरह ही श्री गणेश जी का भी हर साल एक प्रमुख त्योहार गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है, वहीं इस दौरान श्री गणेशजी का गणेश उत्सव 10 दिनों तक पूरे देश में जगह जगह चलता है। ऐसे में इस साल यानि 2020 में यह गणेश चतुर्थी त्योहार 22 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा।

ऐसे में आज हम आपको देश के प्रमुख गणेश मंदिरों में से एक अष्ठविनायक मंदिर के बारे में बता रहे हैं। दरअलस पुणे के विभिन्‍न इलाकों में श्री गणेश के आठ मंदिर हैं, इन्‍हें अष्‍टविनायक कहा जाता है। इन मंदिरों को स्‍वयंभू मंदिर भी कहा जाता है। स्‍वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्‍वयं प्रकट हुए थे यानि किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्‍थापित नहीं की थी। इन मंदिरों का जिक्र विभिन्‍न पुराणों जैसे गणेश और मुद्गल पुराण में भी किया गया है। ये मंदिर अत्‍यंत प्राचीन हैं और इनका ऐतिहासिक महत्‍व भी है। इन मंदिरों की दर्शन यात्रा को अष्‍टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है।

अष्ठविनायक मंदिर के संबंध में मान्यता है कि तीर्थ गणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं। धार्मिक नियमों से तीर्थयात्रा शुरू की जानी चाहिए। यात्रा निकट मोरगांव से शुरू कर और वहीं समाप्त होनी चाहिए। पूरी यात्रा 654 किलोमीटर की होती है।

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पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रह्माजी ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्रीगणेश विभिन्न रूपों मे अवतरित होंगे।

सतयुग में विनायक, त्रेता युग में मयूरेश्वर, द्वापर युग में गजानन व धूम्रकेतु नाम से कलयुग के अवतार लेंगे। भगवान गणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं। दैत्य प्रवृतियों के उन्मूलन के लिए ये ईश्वरीय अवतार हैं।


ये हैं वो आठ मंदिर...

1.मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर
मयूरेश्वर विनायक का मंदिर पुणे के मोरगांव क्षेत्र में है। पुणे से करीब 80 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार भी हैं जिन्‍हें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग चारों युग का प्रतीक मानते हैं। यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उसकी सूंड बाई है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। यहां नंदी की भी मूर्ती है। कहते हैं कि इसी स्‍थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर उससे युद्ध करते हुए किया था। इसी कारण उनको मयूरेश्वर कहा जाता है।

अष्ठविनायक मंदिर : मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर

2. सिद्धिविनायक मंदिर
सिद्धिविनायक मंदिर करजत तहसील, अहमदनगर में है। ये मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूर भीम नदी पर स्‍थित है। यह मंदिर करीब 200 साल पुराना बताया जाता है। सिद्धटेक के में भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी, वहीं एक पहाड़ की चोटी पर सिद्धिविनायक मंदिर बना हुआ है। इसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। इस मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पहाड़ की यात्रा करनी होती है। सिद्धिविनायक मंदिर में गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। यहां गणेश जी की सूंड सीधे हाथ की ओर है।

अष्ठविनायक मंदिर : सिद्धिविनायक मंदिर

3. बल्लालेश्वर मंदिर
पाली गांव, रायगढ़ में इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्‍त बल्‍लाल के नाम पर रखा गया है। बल्‍लाल की कथा के बारे में कहते हैं कि इस परम भक्‍त को उसके परिवार ने गणेश जी की भक्‍ति के चलते उनकी मूर्ती सहित जंगल में फेंक दिया था। जहां उसने केवल गणपति का स्‍मरण करते हुए समय बिता दिया था। इससे प्रसन्‍न गणेश जी ने उसे इस स्‍थान पर दर्शन दिया और कालानंतर में बललाल के नाम पर उनका ये मंदिर बना। ये मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है।

अष्ठविनायक मंदिर : बल्लालेश्वर मंदिर

4.वरद विनायक मंदिर
रायगढ़ के कोल्हापुर में वरदविनायक मंदिर। एक मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा होने का वरदान देते हैं। एक कथा ये भी है कि इस मंदिर में नंददीप नाम का दीपक है जो कई वर्षों से लगातार जल रहा है।

अष्ठविनायक मंदिर : वरद विनायक मंदिर

5. चिंतामणी मंदिर
तीन नदियों भीम, मुला और मुथा के संगम पर स्‍थित थेऊर गांव में स्थित है चिंतामणी मंदिर। ऐसी मान्‍यता है कि विचलित मन के साथ इस मंदिर में जाने वालों की सारी उलझन दूर हो कर उन्‍हें शांति मिल जाती है। इस मंदिर से भी जुड़ी एक कथा है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को शांत करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।

अष्ठविनायक मंदिर : चिंतामणी मंदिर

6. गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर
लेण्याद्री गांव में गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर स्थित है। जिसका अर्थ है गिरिजा के आत्‍मज यानी माता पार्वती के पुत्र अर्थात गणेश। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसे लेण्याद्री पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। इस पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं जिसमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। एक अौर विशेषता ये है कि यह पूरा मंदिर एक ही बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।

अष्ठविनायक मंदिर : गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर

7. विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर
पुणे के ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है। पुणे-नासिक रोड पर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर ये मंदिर बना है। एक किंवदंती के अनुसार विघनासुर नाम का असुर जब संतों को प्रताणित कर रहा था, तब भगवान गणेश ने इसी स्‍थान पर उसका वध किया था। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।

अष्ठविनायक मंदिर : विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर

8. महागणपति मंदिर
महागणपति मंदिर राजणगांव में स्‍थित है । इस मंदिर को 9-10वीं सदी के बीच का माना जाता है। पूर्व दिशा की ओर मंदिर का बहुत विशाल और सुन्दर प्रवेश द्वार है। यहां गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करने के लिए इस मंदिर की मूल मूर्ति को तहखाने में छिपा दिया गया है।

अष्ठविनायक मंदिर : महागणपति मंदिर

इन आठ पवित्र तीर्थ में 6 पुणे में हैं और 2 रायगढ़ जिले में हैं। सबसे पहले मोरेगांव के मोरेश्वर की यात्रा करनी चाहिए और उसके बाद क्रम में सिद्धटेक, पाली, महाड, थियूर, लेनानडरी, ओजर, रांजणगांव और उसके बाद फिर से मोरेगांव अष्टविनायक मंदिर में यात्रा समाप्त करनी चाहिए।



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