यहां स्‍वयं प्रकट हुए शनिदेव, फिर एक शनिचरी अमावस्या को खुद ही बदल लिया अपना स्थान

देश में भगवान शिव के शिष्य और सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं। एक और जहां शनि को न्याय का देवता माना जाता है, वहीं शनि को लेकर लोगों में भय का वातावरण सामान्य है, जबकि शनि केवल आपके कर्मों का फल ही देते हैं। यमराज शनिदेव के भाई व यमुना शनिदेव की बहन हैं।

देश में मौजूद शनिदेव के कई मंदिरों में कुछ मंदिर तो अत्यधिक प्रसिद्ध है। इन मंदिरों में देश के हर कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं और शनिदेव की पूजा करते हैं। ऐसे में आज हम आपको शनिदेव के ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां के संबंध में मान्यता है कि वे यहां स्वयं प्रकट हुए थे, साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस शनि मंदिर में भगवान शनि देव के दर्शन मात्र से प्रकोप दूर हो जाते हैं। यहां तक की ये प्रतिमा खुद एक बार अपना स्थान तक बदल चुकी है।

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प्रकट होने की अद्भुत कथा : स्वप्न में दर्शन देकर शनिदेव ने बताई थी प्रतिमा...
यूं तो आपने शनि शिंगणापुर या कोकिला वन जैसे शनिदेव के तमाम मंदिरों के बारे में सुना होगा, लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर में भी शनिदेव का एक प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। जूनी इंदौर के इस मंदिर के बारे में एक कथा प्रचलित है कि मंदिर के स्थान पर लगभग 300 वर्ष पूर्व एक 20 फुट ऊंचा टीला था, यहां मंदिर के पुजारी के पूर्वज पंडित गोपालदास तिवारी आकर ठहरे थे।

एक रात शनिदेव ने पंडित गोपालदास को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि उनकी एक प्रतिमा उस टीले के अंदर दबी हुई है। शनिदेव ने पंडित गोपालदास को टीला खोदकर प्रतिमा बाहर निकालने का आदेश दिया। जब पंडित गोपालदास ने उनसे कहा कि वे दृष्टिहीन होने से इस कार्य में असमर्थ हैं, तो शनिदेव उनसे बोले, 'अपनी आंखें खोलो, अब तुम सब कुछ देख सकोगे।'

स्वप्न में दिखे शनि और दृष्टिहीन को मिल गई दृष्‍टि...
आखें खोलने पर पंडित गोपालदास ने पाया कि वास्‍तव में उनका अंधत्व दूर हो गया है और वे सबकुछ साफ-साफ देख सकते हैं। अब पंडितजी ने टीले को खोदना शुरू किया। उनकी आंखें ठीक होने के चमत्‍कार के चलते स्‍थानीय लोगों को भी उनके स्वप्न की बात पर यकीन हो गया और वे खुदाई में उनकी मदद करने लगे। पूरा टीला खोदने पर यहां वाकई शनिदेव की एक प्रतिमा निकली। इस प्रतिमा को बाहर निकालकर उसकी स्थापना की गई। आज भी इस मंदिर में वही मूर्ति स्थापित है।

एक अन्य चमत्‍कार
इस प्रतिमा से जुड़े एक अन्य चमत्कार की कथा भी प्रचलित है। बताया जाता है कि शनिदेव की प्रतिमा पहले वर्तमान में मंदिर में स्थापित भगवान राम की प्रतिमा के स्थान पर थी। एक शनिचरी अमावस्या पर यह प्रतिमा स्वतः अपना स्थान बदलकर उस स्थान पर आ गई जहां ये अब स्‍थापित है। तब से शनिदेव की पूजा उसी स्थान पर हो रही है और यह श्रद्धालुओं की प्राचीनतम आस्था का केंद्र बन गया है। हर वर्ष शनि जयंती पर इस मंदिर में उत्सव मनाया जाता है।



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